SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन आचारसंहिता और पर्यावरणशुद्धि उपभोग-परिभोग ही हरेक प्रकार की चीजों की मात्रा और प्रकार निश्चित किये जाते ___इस तरह बाह्य चीज-वस्तुओं के संयमित और नियंत्रित उपयोग से पर्यावरण का संतुलन हो सकता है। लेकिन यह नियंत्रण व्यक्तिको अपने आप सिद्ध करना होगा । इसके लिए उसे क्रोधादि कषायोंसे मुक्त होना पड़ेगा । राग, अहंता, क्रोध, गर्व आदि कषायों पर विजय पाने के बाद ही व्यक्तिकी चेतना अपने और पराये से भेदसे उपर उठ जाती है। और 'आयतुल पायासु' - अन्य में भी आत्मभावकी अनुभूति करती है। अहिंसक आचरण के लिए मनुष्य के मनमें सर्व के प्रति मैत्रीभावना, 'आत्मवत् सर्वभूतेषु' की भावना सदा जागृत होनी चाहिये, अन्यथा उसका व्यवहार स्व-अर्थको सिद्ध करनेवाला ही. होगा, जो सामाजिक जीवनमें विषमता उत्पन्न कर सकता है। . . व्यक्तिकी आंतरिक विशुद्धि ही प्राकृतिक और सामाजिक जीवनमें संवादिता की स्थापना कर सकती है। यह संवादिता ही पर्यावरण विशुद्धिका पर्याय भी बन सकती है।
SR No.002239
Book TitleBauddh aur Jain Darshan ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Vora
PublisherNiranjana Vora
Publication Year2010
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy