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________________ जैन आचारसंहिता और पर्यावरणशुद्धि कारण शायद, पर्यावरण को सबसे बड़ी हानि पहुंची है। केमिकल उद्योग और कुदरती तेल आधारित - जिसे पेट्रोकेमिकल संकुलन कहा जाता है, - ऐसे उद्योगोंमें प्रदूषण की समस्या अनिवार्यरूप से होती है । जल, वायु और पर्यावरणीय प्रदूषणको दूर रखने के लिए औद्योगिक एकमो आदि पर सरकार द्वारा अंकुश रखने का आरंभ तो हुआ है, लेकिन जब तक वैयक्तिक रूपसे इच्छाओं पर अंकुश नहि होगा, अहिंसा और अपरिग्रह का पालन नहीं होगा, तब तक अपना प्रयोजन सिद्ध नहीं होगा । व्यक्ति के लिए जीवननिर्वाह के लिए कितनी चीजें आवश्यक है, उसे कितनी. प्राप्त हो सकती है, उत्पादन प्रक्रिया में जीवसृष्टि के लिए आधाररुप हंवा, पानी, जमीन और वनस्पतिको कितनी हानि होती है, उसका परिप्रेक्षण करना चाहिए । यंत्र-सामग्री, वाहन-व्यवहार के साधनों के अपरिमित उपयोग से ध्वनि-प्रदूषण की समस्या भी हमारे सामने हुई है। जैनदर्शन में अग्निकाय और अग्नि को सजीव माना गया है। आचारांग नियुक्तिकारके अग्नि सजीव होने के लक्षणरूप से खद्योतका दृष्टांत दिया है। खद्योत (जूगन) अपनी सजीव अवस्थामें ही प्रकाश दे सकता है । मृत्यु के बाद वह प्रकाशरहित हो जाता है । प्रकाशित होना, वह उसके चैतन्य का लक्षण है । इस तरह अग्निका उष्ण स्पर्श भी उनके सजीव होने का लक्षण है। श्रीदशवैकालिक सूत्रमें 'दशपूर्वधर सूत्रकार. श्री शय्यंभवसूरिजी'ने बताया है कि किसी भी साधुसाध्वी के लिए अग्नि, अंगार, मुर्मुर, अर्चि, ज्वाला, शुद्ध अग्नि, विद्युत, उल्का आदिको प्रदीप्त करना निषिद्ध है । उसमें घी और ईंधनका उत्सिंचन नहीं करना चाहिए। वायुसे ज्यादा प्रज्वलित करनेका प्रयास और उसे बुझानेका प्रयास भी नहीं करना चाहिए। इसे करने से तेउकायको विरोधना-हिंसा का दोष होता है । आज हम जंगलों को काटकर कोयले बनानेका व्यवसाय करते हैं, जलमें उत्पन्न विद्युत का और गैसका अनियंत्रित उपयोग हो रहा है । इससे वनस्पति और जल संबंधित प्रदूषण के साथ साथ वायु का प्रदूषण भी बढ़ गया है। . इस समयमें वैज्ञानिकों ने विकसित और विकासशील देशों द्वारा आकाशमें बार बार उपग्रहों रखने के बारे में और अवकाश में होनेवाले प्रयोगों के प्रति गहरी चिन्ता व्यक्त की है। उपग्रहों और अवकाशी प्रयोगों द्वारा स्पेस शटल के ज्यादातर उपयोगसे, सूर्य के पारजांबली किरणो (Ultraviolate), जो मनुष्य और समग्र · · प्राणीसृष्टि के लिए हानिकारक है, उसे रोकनेवाला ओझोन वायुका स्तर नष्ट हो जायेगा और सूर्य के पारजांबली किरण से सजीव सृष्टि का नाश होगा । सूर्यमें से मानो
SR No.002239
Book TitleBauddh aur Jain Darshan ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Vora
PublisherNiranjana Vora
Publication Year2010
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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