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________________ बौद्ध और जैनदर्शन के विविध आयाम आचारदर्शन का - सदाचार प्रेरक धर्म का उद्देश्य है। धर्मशास्त्र प्रणीत हमारे सारे आचार की नींव है शरीरविज्ञान, जीवविज्ञान और मनोविज्ञान । हम धर्म के मर्म तक पहुंचने की कोशिश करेंगे तो यह ज्ञान होगा कि हमारे सारे नैतिक मूल्यों वैज्ञानिक सत्य से ही प्रकाशित हैं। भारतीय ऋषि-महर्षियों के नैतिक उपदेशों की पवित्र धरोहर जिसे उन्होंने अपनी बौद्धिक प्रतिभा एवं सतत साधना के अनुभवों से प्राप्त किया था, जो मानवजाति के लिये चिर सौख्य एवं शाश्वत शांति का संदेश लेकर अवतरित हुई थी, उसका हम सही मूल्यांकन नहीं कर सके। संप्रदाय और धर्म का सही स्वरूप : . विज्ञान के विकास के साथ साथ आज विश्व के देशों का अंतर घटतां जा . रहा है । मनुष्य की दृष्टि भी व्यापक होने लगी है । आज किसी भी धर्मानुयायी अपने आपको ही सर्वश्रेष्ठ मानने की भूल नहीं कर सकेगा, नहीं करनी चाहिये । अलबत्त वर्तमान के परिप्रेक्ष्य में आज धर्म संप्रदायों के रूप में विभाजित हो गया है और मनुष्य मनुष्य के बीच में संबंध जोडने की बजाय अलगता प्रस्थापित कर रहा है, अन्योन्य में श्रेष्ठता की स्पर्धा, तिरस्कार और वैरभाव बढ़ाता है । तथापि धर्म का त्याग करना अथवा विश्व में धर्म मात्र का अस्तित्त्व ही समाप्त कर देना - यह न तो संभवित है, न इच्छनीय । धर्मों का अन्योन्य विरोध करने के बजाय, साथ में रह कर जो अधर्म है, सर्वथा अहितकारी है उसका विरोध और त्याग करना चाहिए । धर्म का जो शुभ तत्त्व है, आध्यात्मिकता के प्रति आगे बढ़ानेवाला तत्त्व है, प्रत्येक धर्म में ऐसे जो सामान्य और स्वीकृत सिद्धांत है - जैसे अहिंसा, सत्य, अचौर्य, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य आदि - उसके आधार पर मानवधर्म का निर्माण करना चाहिए । आधुनिक समय में महात्मा गांधीजी, विनोबाजी और आचार्य महाप्रज्ञजी जैसे महामनीषियों के जीवनदर्शन द्वारा एक नया मानवधर्म निर्मित हो रहा है। संन्यास और कर्मयोग दोनों का संमिलन इसमें होता है । अहिंसा के साधन से जीवन की सर्व समस्याओं का निराकरण शोधने की प्रेरणा इस युग की सर्वोत्कृष्ट धर्मप्रेरणा है। संप्रदाय तो परम तत्त्व को प्राप्त करने के अनेक मार्गों में से एक मार्ग ही होता है, धर्म में पूर्णता का भाव संनिहित है । धर्म और विज्ञान का संबंध : विनोबाजीने विज्ञान और धर्म दोनों के समन्वय की आवश्यकता का सुंदर निर्देशन किया है। गहन अंहकार में प्रकाश करना विज्ञाननिष्ठा है और द्वेष तथा वैमनस्यपूर्ण व्यक्ति के साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार करना धर्मनिष्ठा है। सर्वधर्म का समन्वय
SR No.002239
Book TitleBauddh aur Jain Darshan ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Vora
PublisherNiranjana Vora
Publication Year2010
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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