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बौद्ध और जैनदर्शन के विविध आयाम उनके विषय ज्ञान के आधार हैं। इन्हीं आधारो को आयतन कहते हैं चक्षु से मन तक छह इन्द्रियाँ है और रूप, शब्द, गंध, रस, स्पर्श और धर्म इनके विषय हैं । इस तरह. बारह आयतन होते हैं । इनके द्वारा ज्ञान उत्पन्न होता है ।
मन-आयतन का विषय धर्म है । बौद्धदर्शन में धर्म शब्द का प्रयोग बहुत व्यापक है । भूत और चित्त के उन सूक्ष्म तत्त्वों को 'धर्म' कहते हैं, जिन के आघात तथा प्रतिघात से समस्त जगत की स्थिति होती है, अर्थात् यह जगत धर्मों का एक संघात मात्र है।
ये सभी धर्म सत्तात्मक है और 'हेतु' से उत्पन्न होती हैं । सभी स्वतंत्र हैं और क्षण, क्षण परिवर्तित होते रहते हैं ।
प्रथम ग्यारह आयतनों में प्रत्येक में एक एक धर्म है और मन आयतन में चौसठ धर्म होने के कारण उसे 'धर्मायतन' भी कहते हैं।
धातु - यहाँ 'धातु' शब्द का अर्थ 'स्वलक्षण' अर्थात् स्वतंत्र सत्ता : रखनेवाला, ऐसा किया जाता है। वसुबन्धुने धातुओं को ज्ञान के 'अवयव' अर्थात् वे सूक्ष्म तत्त्व-जिन के समूह से ज्ञान की सन्तति की उत्पत्ति होती है ऐसा कहा है।
इनकी संख्या अठारह है : छ: इन्द्रियाँ, छः इन्द्रियों के विषय तथा छ इन्द्रियों के विषयों से उत्पन्न विज्ञान ।
जैसे
इन्द्रिय
विषय
विज्ञान
(१) चक्षुर्धातु
.
(२) श्रौत्रधातु
(३) घ्राणधातु
(७) रूपधातु . (१३) चक्षुर्विज्ञान
(चाक्षुष ज्ञान) (८) शब्दधातु . (१४) क्षोत्रविज्ञान
(श्रावण ज्ञान) (९) गन्धधातु (१५) घ्राणविज्ञान
(घ्राणज ज्ञान) (१०) रसधातु (१६) रासनविज्ञान
(रासन ज्ञान) (११) स्प्रष्टव्यधातु (१७) कायविज्ञान .
___ (स्पार्शन ज्ञान) (१२) धर्मधातु (१८) मनोविज्ञान ।
(अन्तर्हृदय के भावों का ज्ञान)
(४) रसनाधातु
(५) कायधातु
(६) मनोधातु