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बौद्ध और जैनदर्शन के विविध आयाम
ही वहां आया हो ।
सुवर्ण के समान पीत वर्ण वाली स्त्रियां जब कभी कहां की इन्द्रनील मणियोंसे निर्मित गृहभित्तियों पर आकर उपस्थित होती हैं तो उनकी नीले मेघों के पास चमकनेवाली बिजलीयोंकी सी शोभा होती है।
- उस नगर के घरों पर ध्वजायें जगमगाते हुये पीले वर्ण की सी हैं सो जिस समय वे पवन के प्रताप से इधर उधर फहराती हैं तो बिना मेघ के ही आकाश में बिजली के चमकनेका संदेह करा देती हैं अर्थात् बिजली का और उनका रंग एक समान होने से लोग मेघ रहित आकाश में उन्हें बिजली समझ सशंक हो जाते
उस नगर के घरों की देहलियां चम चमाते हुये मणियों की बनी हुई हैं इसलिये वहा के बछरे (गायों के बेटे बच्चे) उन्हें हरे हरे दूर्वाके अंकुर समझ खानेके लिये दौडते हैं।
.. .. . युद्ध के वर्णन में कविने अमित उत्साह बताया है । अहिंसा-मूलक जैन धर्म के उन्नयन और प्रसार के उद्देश्यवाले और श्री पार्श्वनाथ तीर्थंकर के चरित्रचित्रण करते हुए काव्य में युद्ध का वर्णन क्वचित अप्रस्तुत लगता है। लेकिन युद्ध की विभिषिकाका प्रत्यक्ष परिचय दे कर अहिंसा का महत्त्व निर्देशित कीया है, ऐसा हम मान सकते हैं । युद्ध के वर्णनों में एकरूपता और पुनरावृत्ति भी है ही। अस्त्रशत्र के नाम, सेनाका युद्ध के लिये प्रयाण, युद्ध के प्रसंग आदि में एकरूपता होने पर भी वीररस का उत्साहप्रेरक आलेखन हुआ है । कवि की शब्दयोजना और वर्णानुप्रास का कौशल्य भी इसमें सहायक होता है । वज्रनाभ राजा की विजययात्रा का सुंदर वर्णन छठे सर्ग के आरंभ में मिलता है। धर्म-चिंतन :
नीति उपदेश और जैनधर्म के सिद्धांतो का माहात्म्य बतानेवाली कई सूक्तियाँ बीच बीच में बिखरी पड़ी हैं।
हतवर्तिपधायि मानसं तिमिरं तत्परिमार्जनं बचः । . . .
गुरुबंधुजनोपदर्शितं कथमुलंध्यमतो हितैषिणां ॥ (सर्ग - ७, ८४) मानसिक अंधकार-अज्ञान (मोह) बडा ही प्रबल होता है वह अच्छे बुरे का विचार नहीं करने देता । उसको दूर करने में तैल और वत्तीका दीपक काम नही देता । उसको दूर करने वाले तो गुरु के हितकारी वचन ही होते हैं, इस लिये