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________________ श्री वादिराजसूरिकृत पार्श्वनाथचरित का साहित्यिक मूल्यांकन पद्माधिपनंदन (बसंत) को आते हुये देखा तो भय से शीघ्र ही समस्त दिशा विदिशाओं को छोडकर वह भाग गया, और उसके बाद ही "अरे ! वृक्षखंडों का तोडनेवाला वह दुरात्मा हिंसक शिशिर कहां गया ?" इस प्रकार के वचनों को कोकिलों के शब्दों से कहते हुये के समान वसंत शीघ्र ही वन में प्रविष्ट हो गया । नगरवर्णन : इसके अतिरिक्त वस्तु-वर्णन - अर्थात् देश, नगर, क्रीडा, दुर्ग, सेना, युद्ध की तैयारी और युद्ध आदि का चित्रोपम और प्रभावशाली निरूपण कविने किया है । कृति के आरंभ में अरविंदराजा के पोदनपुरनगर का वर्णन इस तरह दिया है'वेदीरत्नप्रभोत्कीर्णाः प्रासादाः यत्र पांडुराः । सेंद्र चापशरन्मेघविभ्रमं साधु विभ्रते ॥ गृहोग्रोन्नतरत्नानां स्फूरंत्यो रश्मिसूचयः । दिवाऽपि यत्र कुर्वति शंकामुल्कासु पश्यताम् ॥ आस्तीपर्णा विपणियत्र क्रय्यमाणिक्यरोचिषा । प्राप्ताबालातपेनेव व्योमपाथेयलिप्सथा ॥ यत्रेंद्रनीलनिर्माणगृहभित्तीरुपास्थिताः । हेमवर्णाः स्त्रियो भांति कालाब्दानिव विद्युतः ॥ भवनोत्तंभिता यत्र पताकाः पीतभासुराः । भावयंत्यधने व्योम्नि क्षणदीधितिविभ्रमम् ॥ हरिन्मणिमयारंभामुन्मयूखां जिधित्सया । दूर्वोकरूधिया यत्र वत्सा धावंति देहलीम् ॥ १०९ (सर्ग - १, ५८ से ६३) गृह के रत्नों की प्रभा से व्याप्त जहां के प्रासाद अपनी कांति से इन्द्रधनुष से सहित शरत्कालीन मेघ की शोभा को धारण करते हैं । घरों के उन्नत अग्रभाग में लगे हुये रत्नों की चमकती हुई किरणें दिन में भी देखनेवालों को अपने में बिजली की शंका कराती हैं । विक्रीके लिये रक्खे हुये माणिक्यों की लाल लाल किरणों से व्याप्त वहाँ का जौहरी बाजार ऐसा मालूम पडता है मानों आकाश मार्ग में गमन करने से पहिले पाथेय (रास्ते में खाने का सामान) को ग्रहण करने की इच्छा से लोहित नवीन सूरज
SR No.002239
Book TitleBauddh aur Jain Darshan ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Vora
PublisherNiranjana Vora
Publication Year2010
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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