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________________ श्री वादिराजसूरिकृत पार्श्वनाथचरित का साहित्यिक मूल्यांकन 'धन है में निवास करनेवाले लोगों ने वैभव की पीड़ा कभी भी न सही थी इस प्रकार का अवसर उन्होंने कभी न पाया था। और, अभीष्ट पदार्थ नहीं मिलते' - वर्णनकला : - १०५ पात्र का चरित्र - विकास : 1 उनके पात्र जो वीर है, वह जन्म से ही वीर है, जो धार्मिक प्रकृति का है, वह जन्म से ही धार्मिक है। जो दुष्ट है, वह जन्म से ही दुष्ट है । उनके चरित्र की रूप रेखा पहले से निर्दिष्ट होती है, उनकी हर क्रियाओं से उनकी वही निश्चित विशेषता ही निखर कर सामने आती है । तब भी आरंभ में मरुभूति और कमठ के पात्रों का चरित्र - विकास अलबत्त निश्चित दिशा में ही प्रतीत होता । कमठ के पात्र की दुष्टता जन्मांतर में भी वही रूप से प्रतीत होती है, जव मरुभूति के पात्र में कहीं चढाव - उतार दीखते हैं। उसके पात्रालेखन में वीरत्व और धार्मिकता के विषय में ह्रास, विकास और वृद्धि के लिये अवकाश दिया गया है। कवि हर पात्र को व्यक्तिगत वैशिष्ट्यसे समन्वित करने का प्रयत्न करते हैं । प्राप्त परिस्थिति और घटनाओं में पात्रों की विविध मनोदशाओं का चित्रण भी कीया हैं। जैसे मरुभूमि हाथी का जन्म लेता है तब मुनिवचन के उपदेश सुनने के पहले का उसका रुद्ररूप, प्रकृति की कठोरता और मुनिवचन सुनने के बाद परिवर्तित स्वभाव की कोमलता का हृदयस्पर्शी निरूपण हुआ है । कविने पात्र, परिस्थिति, प्रकृति आदि का कल्पनामंडित आलेखन कीया है नारी-सौंदर्य का वर्णन : प्राचीन महाकाव्यों की तरह यहां भी कविने नारीसौंदर्य का वर्णन कीया है। नारी - सौंदर्य पुरुष के प्रेमोद्रेकका कारण बनता है, जिससे अनेक घटनायें और कार्य - व्यापार प्रसूत होते हैं । प्रायः परंपरित उपमानों का ही सौंदर्यवर्णन में उपयोग होता है । प्रत्येक नारी चंद्रमुखी और पीन - पयोधरोवाली है। उनके नेत्र कमलदल जैसे और चाल मत्त गजकी भाँति है, स्त्री- अंगों का फुटकर वर्णन करने के अतिरिक्त कविने नख - शिख वर्णन भी किया है । वह एक प्रकार से रूढिबद्ध सौंदर्य - वर्णन है। शरीर के अंग-प्रत्यंग का क्रमिक वर्णन परंपरायुक्त सादृश्यमूलक अप्रस्तुतों के माध्यम से किया जाता है । देवांगनाओं द्वारा तीर्थंकर को जन्म देनेवाली विश्वसेन • राजा की रानी सगर्भा ब्रह्मदत्ता के सौंदर्य और अंग-प्रत्यंग का वर्णन इस तरह हुआ है - 1
SR No.002239
Book TitleBauddh aur Jain Darshan ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Vora
PublisherNiranjana Vora
Publication Year2010
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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