SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 108
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री वादिराजसूरिकृत पार्थनाथचरित का साहित्यिक मूल्यांकन १०१ ग्रीष्मकाल, वर्षाकाल आदि के चित्रात्मक वर्णन यहाँ मिलते हैं । उपमा-उपमेय और उपमान अथवा विरोधी साद्दश्यमूलक अलंकारो - दृष्टांतो के आयोजन में कवि की कुशलता निःशंक प्रशंसनीय है । काव्य के आरंभ के बाद २, ३, और ४ थे श्लोक में श्री पार्श्वनाथ की प्रशस्ति करते हुए वे कहते हैं : हिंसादोषक्षयातेत पुष्पवर्षश्रियं दधुः अग्निवर्षों रुषा यस्य पूर्वदेवेन निर्मितः । तपसा सहसा निन्ये हृद्यकुंकुमपंकताम् । गरुवोड़पि त्रिलोकस्य गुरोोहादिवादयः लाघवं तूलवद् यस्य दानवप्रेरिता ययुः । कुपित हुये कमठके जीव असर ने पूर्व वैरके कारण जो बाण छोडे थे वे जिनके चरणों का आश्रयं पाते ही मानो हिंसासे उत्पन्न हये दोषों को नष्ट करने के लिये ही पुष्पमाला हो गये, तो अग्नि वर्षा की थी वह तप के प्रभाव से सहसा मनोहारी कुमकुम का लेप हो गया, बडे भारी जो पत्थर फेंके थे वे तीन लोक के गुरु भगवान के द्रोही हो जाने के भयसे ही मानो रुई के समान हलके और कोमल हो गये। भावार्थ अपने वैरी द्वारा उपर छोडे गये वाणों को जिन्होने फूलों की माला के समान प्रिय समझा, आग की वर्षा को केसर का लेप मान स्वागत किया और वर्षाये गये पत्थरों को रुई के समान कोमल एवं हलके मान कुछ भी पर्वा न करी। ... बाद में कविने गृद्धपिच्छ मुनिमहाराज रत्नकरण्डक के रचयिता स्वामी समंतभद्र, नैयायिकों के अधीश्वर अफलकदेव, अनेकांत का प्रतिपादन करनेवाले सिंह आचार्य, सन्मति प्रकरण के रचयिता सन्मति, मुनिराज, त्रेसठ शलाका पुरुषों का चरित्र लिखनेवाले श्री जिनसेनस्वामी, जीवसिद्धि के रचयिता अनंतकीर्ति मुनि, महातेजस्वी वैयाकरण श्री पालेयकीर्ति मुनि कवि धनंजय, तर्कशास्त्र के ज्ञाता अनंतवीर्य मुनि, श्लोकवतिकालंकार के रचयिता श्री विद्यानंद स्वामी चंद्रप्रभचरित के कर्ता वीरनंदिस्वामी आदि विद्वद्दजनों का बडे आदर से और अहोभाव से स्मरण कीया है । इस के बाद अनेक अलंकारों से युक्त शैली में नगर, युद्ध, स्त्री, वन-उपवन-प्रकृति, शीतकाल, ग्रीष्मकाल, वर्षाकाल आदि के चित्रात्मक वर्णनो के साथ श्री पार्श्वनाथ स्वामी के चरित्र का निरुपण किया है। महाकाव्योचित लक्षण : ..... कृति के प्रत्येक सर्ग के अंत में कविने "श्री पार्श्वनाथ जिनेश्वचरिते
SR No.002239
Book TitleBauddh aur Jain Darshan ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Vora
PublisherNiranjana Vora
Publication Year2010
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy