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________________ बौद्ध और जैनदर्शन के विविध आयाम 1 और लोभ से विमुक्त तथा ज्ञान से युक्त चरित्र का निरुपण किया गया है । रश्मिवेग मुनिव्रत धारण करते हैं और पूर्वभव के वेरी कमठ, जिसने अजगर का देह धारण कीया था - वह उसे निगल जाता है। स्वर्गगमन के बाद वे अश्वपुर के राजा वज्रकीर्य के पुत्र वज्रनाभि के रूप में उत्पन्न होते हैं । वज्रनाभि के लिये चक्ररल का प्रादुर्भाव, दिग्विजय करके चक्रवर्ती राजा बनना, चक्रवर्ती का ऐश्वर्य और बाद में वज्रनाभिका वैराग्य - इन सब घटनाओं के साथ षड्ऋतुओं, युद्ध, नगर, वन-उपवन, जलाशय, स्त्री-पुरुषों का कामयोग आदि का आलंकारिक शैलीमें सुंदर वर्णन प्रस्तुत कीया गया है । १०० इस के बाद अयोध्यामें वज्रबाहु के आनंद नामक पुत्र के रुप में उत्पन्न हो कर मरुभूति का जीव, जिनयज्ञ और तपस्या द्वारा तीर्थंकर के सर्व गुणों से युक्त बनता है । कविने यहाँ जैन धर्म जिनेन्द्र की बड़ी प्रशस्ति और स्तुति की है । दस - ग्यारह और बारहवें सर्गमें पार्श्वनाथ स्वामी का गर्भ में आना, उनका जन्मकल्याणक, इन्द्रादि देवो द्वारा मेरु पर्वत पर भगवान का अभिषेक और पूजा, बाल्यकाल, भगवान का पंचाग्नितप को कुत्तप सिद्ध करने के लिये जाना, लकडी में से जलते नाग युगल को बाहर निकालना और पंच नमस्कार मंत्र द्वारा उनको मुक्त करना - तपस्वी का असुर होना, विवाह के लिये पिता का आग्रह, पार्श्वनाथ स्वामी द्वारा वैराग्य के लिए इच्छा प्रगट करना, लौक्रांतिक देवों का प्रतिबोध देना, भगवान का तपकल्याणक और पारणा, असुर के रुप में कामठ के जीव का भगवान को उपसर्ग करना, पद्मावती के साथ धरणेन्द्र का आगमन और भगवान की सेवा करना, भगवान का ज्ञानकल्याणक, असुर का नम्र होना, समवशरण की रचना, भगवान की स्तुति, भगवान का धर्मोपदेश, भगवान का विहार, मोक्षकल्याणंक, इन्द्र द्वारा स्तुति और अंत में ग्रंथकर्ता की प्रशस्ति के साथ इस काव्यकृति समाप्त होती है । काव्य प्रकार : श्री पार्श्वनाथचरित कृति में महाकाव्य के अनेक लक्षण प्राप्त होते हैं । उसके नामाभिधानकी दृष्टि से यह चरित्र काव्य ही है। जैन तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ का पूर्वभवों के सहित - चरित अंकित होने से चरित्र महाकाव्य है, ऐसा विद्वानों का भी अभिप्राय है । काव्य सर्गबद्ध है, और बार सर्गो में विभक्त है । महाकाव्य के लक्षणों की अपेक्षा अनुसार ग्रंथ का आरंभ भी भगवान पार्श्वनाथ की स्तुति से होता है । वादिराजसूरिने इस कृति को पार्श्वनाथ जिनेश्वर चरित महाकाव्य कहा है। अनेक अलंकारो से युक्त शैली में नगर, युद्ध, स्त्री, वन - उपवन, प्रकृति, शीतकाल,
SR No.002239
Book TitleBauddh aur Jain Darshan ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Vora
PublisherNiranjana Vora
Publication Year2010
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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