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________________ बंध, मोक्ष को तथा भाव भ्रत रूपी प्रकाश को विस्तार से प्रस्तुत किया गया है । इस अनुयोग अर्न्तगत शास्त्रों में मुख्यतः शद्ध-अशद जीव, पुदगल, धर्म, अधर्म, आकाश काल रूप अजीव द्रव्यों का वर्णन है । जिनको तत्व का ज्ञान हो गया है ऐसा भव्य जीव द्रव्यानुयोग का प्रवृत्ति रूप अभ्यास करता है। इसके अतिरिक्त वस्तु का कथन करने में जिन अधिकारों की आवश्यकता होती है । उन्हें अनुयोग द्वार कहते हैं । इस प्रकार भगवान महावीर स्वामी की परम्परा में गणधर आदि महान पुरुषों ने द्वादशांग रूप दिव्य वाणी का परिबोध इन अनुयोगों के माध्यम से प्रतिपादित किया है । परम्पराचार्यों की वाणी के अनुराधक विद्वत् जनों द्वारा अन्य अन्य विद्याओं के माध्यम से उसे प्रस्तुत किया गया है । जन जन के हितार्थ तथा भव्यों की आत्मा के कल्याणार्थ भगवान महावीर स्वामी के दिव्य २६ सौ वें जन्मोत्सव के पावन प्रसंग पर वीतराग वाणी ट्रस्ट द्वारा छब्बीस ग्रंथों को प्रकाशित करते हुए अपने आपको गौरवशाली अनुभव करता हूँ। हम सब अहोभाग्यशाली हैं कि हम सब के जीवन में अपने आराध्य परमपिता देवाधिदेव अंतिम तीर्थेश भगवान महावीर स्वामी का सन् १९७३ में पच्चीस सौ वां निर्वाण महोत्सव मनाने का परम संयोग मिला था । और सन् २००१ में छब्बीस सौ वां जन्मोत्सव अहिंसा वर्ष के रूप में मनाने का सुयोग साकार हुआ । इस महामानव के सम्मान में भारत सरकार ने भी इसे विश्व स्तर पर अहिंसा वर्ष के रूप में चरितार्थ करने का विश्व स्तर पर जो आयोजन साकार किया है वह विश्व जन मानुष को अवश्य अहिंसा, सत्य के सिद्धान्त का परिज्ञान तो देगा ही उसकी महत्ता को प्रतिपादित करने तथा भगवान महावीर के पवित्र आदर्शों पर चलने की प्रेरणाऐं भी प्रदान करेगा । जहाँ संपादक ने सन् १९७३ में भगवान महावीर स्वामी के २५ सौ वें निर्वाण महोत्सव पर एक सौ वर्ष में देश में हुए दिगम्बर जैन विद्वानों, साहित्यकारों, कविगणों, पण्डितों के अलावा समस्त दिगम्बर जैन महाव्रती जनों के सचित्र जीवन वृत्त उनके उन्नत कृतित्व और अपार व्यक्तित्व के साथ लिखकर विद्वत् अभिनंदन ग्रंथ के रूप में प्रकाशित किया था । आज उन्हीं तीर्थेश भगवान महावीर स्वामी के छब्बीस सौ वें जन्मोत्सव पर उनकी पावन स्मृति में भगवान महावीर स्वामी की परम्परा में जन्में हमारे परमाराध्य परम्पराचार्यों तथा उनके ही आधार पर लिखित मूर्धन्य विद्वानों द्वारा प्रणीत २६ प्रकार के आगम ग्रंथों के मात्र हिन्दी रूपान्तर प्रकाशन के संकल्प को साकार किया है। ___अपने स्वर्गीय पिता श्रीमान् सिंघई पं. गुलजारीलाल जी जैन सोरया एवं माँ स्व. श्रीमती काशीवाई जी जैन की पावन स्मृति में स्थापित वीतराग वाणी टुस्ट रजिस्टर्ड टीकमगढ़ (म.प्र.) के अन्तर्गत इन ग्रंथों का प्रकाशन साकार किया गया है । भगवान महावीर स्वामी की परम्परा के महानतम आगम आचार्य भगवंत पुष्पदन्ताचार्य, श्रीसकल कीर्ति आचार्य, श्रीवादीभसिंह सूरि, श्री शुभचन्द्राचार्य, श्रीरविषेणाचार्य श्री सोमकीर्ति आचार्य, सिद्धान्त चक्रवर्ति श्री नेमिचन्द्राचार्य जैसे जैन वांगमय के महान आचार्यों के चरणों में त्रिकाल नमोस्तु कर कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं जिनके द्वारा रचित प्रथमानुयोग के मूल ग्रंथों के आधार पर हमारे सुधी विद्वानों ने हिन्दी टीका करके जनसामान्य के लिए सुलभता प्रदान की है। हम उन हिन्दी टीकाकार महान विद्वानों में- श्री पं. भूध रदास जी, श्री पं. दौलतरम जी, श्री पं. परमानंद जी मास्टर, श्री पं. नंदलाल जी विशारद, श्री पं. गजाधरलाल जी, श्री पं. लालाराम जी, श्री पं. श्रीलाल जी काव्यतीर्थ, श्री प्रो. डॉ. हीरालाल जी एवं डॉ. पं. श्री पन्नालाल जी साहित्याचार्य के प्रति कृतज्ञ हैं जिनकी ज्ञान साधना के श्रम के फल को चखकर अनेको भव्यों ने अपना मोक्ष मार्ग प्रशस्त किया। अंत में ट्रस्ट की ग्रंथमाला के सहसम्पादक के रूप में युवा प्रतिष्ठाचार्य विद्वान श्री पं. बर्द्धमानकुमार जैन सोरया, चिं. डॉ. सर्वजदेव जैन सोरया टीकमगढ़ एवं श्रीमती सुनीता जैन एम.एस-सी., एम.ए. बिलासपुर को आशीर्वाद देता हूँ जिनके निरन्तर अथक श्रम से इन ग्रंथों का शीघ्रता से प्रकाशन सम्भव हो सका । ऐसे अलौकिक समस्त जीवों के उपकारी तीर्थंकर महावीर स्वामी के २६ सौ वें जन्म वर्ष की पुनीत स्मृति में उनके ही द्वारा उपदेशित अध्यात्म ज्ञान के अलौकिक ज्ञान पुंज २६ ग्रंथों के प्रकाशन का संकल्प साकार करते हुए अत्यंत प्रमोद का अनुभव कर रहा हूँ। यह ग्रंथ अवश्य भावी पीढ़ियों कों आध्यात्म का मार्ग प्रशस्त करते रहेंगे । आशा है इससे भावी भव्य जन अपना निरन्तर उपकार करते रहेंगे। सैलसागर, टीकमपढ़ (म.प्र.) प्रतिष्ठाचार्य पं. विमलकुमार जैन सोंग्या "भगवान महावीर निर्वाण दिवस" ..... अध्यक्ष-वीतराग वाणी ट्रस्ट रजि. ४ नवम्बर २००२ प्रधान सम्पादक-वीतरागवाणी मासिक
SR No.002238
Book TitleShantinath Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSakalkirti Acharya, Lalaram Shastri
PublisherVitrag Vani Trust
Publication Year2002
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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