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मोक्ष मार्ग को अवरुद्ध करनेवाला. अज्ञान रूपं अन्धकार यथावत बना ही रहता है । हे विभो ! आप बिना कारण ही जगत के बन्धु हैं । आप.लोक के अद्वितीय पितामह हैं एवं आप ही संसार मात्र को सन्तुष्ट करने के लिए जल वर्षण करनेवाले मेघ के समरूप हैं। हे तीर्थेश ! यद्यपि जगत ही आश्चर्यचकित कर देनेवाली समस्त विभूतियाँ आप में विद्यमान हैं, तथापि आप अपनी काया से भी पूर्णतया निस्पृह हैं । हे देव ! यह रहस्य अत्यन्त आश्चर्यजनक एवं अद्भुत है । यद्यपि आप बाह्य से उपमा रहित भोगोपभोग से सुशोभित हैं तथापि अन्तरंग में वीतराग ही हैं । यह तथ्य सर्वाधिक विस्मयजनक है । हे देव ! आप ही सज्जनों पर अनुग्रह करने में प्रवीण (चतुर ) हैं, इसलिए हे जगतनाथ ! मोक्ष सिद्ध करने हेतु अपनी दिव्य ध्वनि के द्वारा इन भव्य जीवों पर अनुग्रह कीजिए। ____ हे प्रभो ! जन्म-जरा-मृत्यु आदि की ज्वाला का निवारण करने लिए यहाँ एकत्र समस्त मुमुक्षुओं की
आप के वचनरूपी श्रेष्ठ अमृत का पान करने की तीव्र अभिलाषा उत्कट हो रही है । इसलिये हे तीर्थराज ! आप कपा कर समस्त तत्वों का एवं मोक्ष के मार्ग का निरूपण कीजिए क्योंकि आप का करुणा सागर रूप प्रसिद्ध है। इस प्रकार स्तुति-निवेदन करने के उपरान्त नमस्कार कर गणधरदेव चक्रायुध तीर्थंकर भगवान के वचन रूपी अमृत का पान की अभिलाषा प्रकट करते हुए भक्तिपूर्वक अपने कोठे में जा विराजमान हुए । अथानन्तर-गणधरदेव द्वारा इस प्रकार निवेदन करने पर भगवान श्री शान्तिनाथ अपनी गुरु-गम्भीर वाणी में तत्वों का प्ररूपण करने के निमित्त से विस्तारपूर्वक धर्म का स्वरूप कहने लगे । भगवान श्री शान्तिनाथ की दिव्य ध्वनि खिरते समय न तो उनकी मुखमुद्रा में किसी प्रकार का परिवर्तन हुआ एवं न ही जिवा-ओष्ठ आदि का किंचित भी हलन-चलन हुआ । जिस प्रकार किसी पर्वतीय कंदरा से गम्भीर प्रतिध्वनि प्रगट होती है, उसी प्रकार वर्गों को स्पष्ट प्रगट करनेवाली वह अद्भुत दिव्य ध्वनि भगवान के मुखारविन्द से प्रवाहित हो चली-'हे गणधर ! तुम अपने संघ के संग पूर्वोक्त वर्णित
|२५३ जीवादि तत्वों को, उनके भेद और पर्यायों के अनुसार क्रमानुसार श्रवण करो । जिनागम में जीव, अजीव, आस्रव, बंध, सम्वर, निर्जरा एवं मोक्ष-ये सप्त तत्व निरूपित किए गए हैं । इनमें से जीव दो प्रकार का है-एक मुक्त एवं दूसरा संसारी । मुक्त जीवों में कोई भेद नहीं होता । संसारी जीव दो प्रकार के होते हैं-एक त्रस एवं दूसरा स्थावर । जो अष्ट कर्मों से रहित हैं, अष्ट गुणों से सुशोभित हैं, जगतवंद्य हैं,
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