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सिंहवाहिनी नामक शैय्या थी एवं अनुत्तर नामक सुउच्च सिंहासन था । इसी प्रकार उपमा नामक शुभ चँवर एवं दैदीप्यमान रत्नों से निर्मित सूर्यप्रेम नामक छत्र था । चक्रवर्ती के अभेद नामक ऐसा सुन्दर कवच था, जो युद्ध में शत्रुओं के बाणों से कभी भिद नहीं सकता था एवं जिसकी कान्ति दैदीप्यमान थी । उनके पास अत्यन्त मनोरमता को धारण करनेवाला अजितन्जय नाम का मनोहर रथ एवं सुर-असुर समस्त प्राणियों को परास्त करनेवाला वज्रकाण्ड नामक धनुष था । कभी व्यर्थ न जानेवाले अमोघ नामक बाण एवं शत्रुओं का विनाश करनेवाली वज्रतुण्डा नामक प्रचण्ड शक्ति थी ॥ २९०॥ चक्रवर्ती के सिंहारक नामक शूल (भाला), सिंहानख नामक रत्नदण्ड एवं मणियों की मूढवाली लौहवाहिनी छुरी थी । विजयश्री के प्रति अनुराग रखनेवाला एवं मनोवेग ( मन ) के सदृश द्रुतगामी कणप एवं भूतमुख के चिह्नवाला भूतमुख नामक ति खेट था । दैदीप्यमान कांतिवाली सौनन्द नामक खड्ग था एवं सर्व दिशाओं को सिद्ध करनेवाला सुदर्शन नामक चक्र था । उनके चण्डवेग नामक प्रचण्ड तथा वज्रमय नामक दिव्य चर्मरत्न था, जिसमें कभी जल प्रवेश नहीं कर सकता था। चूड़ामणि नामक सर्वोत्तम मणिरत्न तथा अन्धकार को विनष्ट करने में समर्थ चिन्ताजननी नामक कांकिणी थी । श्री शान्तिनाथ चक्रवर्ती के अयोध्या नाम का सेनापित था तथा बुद्धिसागर नामक अत्यन्त बुद्धिमान पुरोहित था । कायवृद्धि नामक मेधावी गृहपति था जो कि अभिलिषित पदार्थों को उपलब्ध करवानेवाला था तथा जिसे महाराज ने आदान-प्रदान के कार्य हेतु नियुक्त किया था । भद्रमुख नाम का स्थपतिरत्न था, जो वास्तुविद्या में अत्यन्त प्रवीण था तथा सुन्दर भवन निर्माण में दक्ष था । विजयपर्वत नामक विशालकाय श्वेतप्रटटा गजराज था तथा पवनन्जय नामक उत्तुंग तथा पवन वेग से गमन करनेवाला अश्व था । महाराज के पास सुभद्रा नामक रमणी - रत्न था, जिसकी उपमा संसार में कहीं नहीं की जा सकती थी । वह अत्यन्त विदुषी थी, स्वभाव से मधुर थी, मनोहर थी एवं दिव्य रूपवान थी ॥ ३००॥ भगवान के आनन्दिनी नामक द्वादश (बारह) भेरी थीं, जिनका मधुर घोष द्वादश योजन तक सुना जाता था एवं समुद्र की गर्जना के समतुल्य जिनका निनाद गम्भीर होता था । विजयघोष नामक द्वादश पटहा थे एवं गम्भीरवर्त नाम के चौबीस शंख थे। इसी तरह अड़तालीस कोटि पताकाएँ थी एवं महाकल्याणक नाम का ऊँचा शुभ दिव्यासन था । विद्युत्प्रभ नाम के सुन्दर मणिकुण्डल थे जो कि सूर्य-चन्द्रमा के समकक्ष थे एवं पुण्य कर्म के उदय से भगवान को प्राप्त हुए थे। रत्नों की किरणों से व्याप्त
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