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में जम्बूद्वीप प्रसिद्ध है, जो कि एक लाख योजन चौड़ा है, गोल है तथा लवण-समुद्र से घिरा हुआ है । वह जम्बूद्वीप सुमेरु पर्वत-रूपी मुकुट से उन्नतं हो रहा है, नदी-रूपी हारों से सुशोभित है, चैत्य-रूपी कुण्डल और जिनालय-रूपी कंकण पहने हुए है । कुल पर्वत ही उसके भुजदण्ड हैं, सुन्दर वेदी ही कटिमेखला या करधनी है, वन ही वस्त्र हैं तथा चूलिका ही तिलक को शोभा दे रही है बावड़ियाँ ही उसकी नाभि है, भोगभूमि आदि की भोग सामग्री ही उसकी भोगोपभोग की सामग्री है, सरोवर ही उसका मुख है तथा अनेक द्वीपों में होनेवाले धन, धान्यादिक से वह धनी हो रहा है। उसमें रहनेवाले देव एवं विद्याधर ही उसकी सेना हैं, रूपाचल या विजयार्द्ध पर्वत ही उसके नपुर हैं तथा उसमें रहनेवाला चार प्रकार का संघ ही उसके परिवार की शोभा बढ़ा रहा है । इस प्रकार महा यशस्वी तथा समस्त गुणों का एकमात्र स्थान ऐसा वह जम्बूद्वीप इस संसार में समस्त द्वीपरूपी राजाओं के मध्य में चक्रवर्ती के समान शोभा दे रहा है । उस जम्बूद्वीप के मध्य भाग में एक लाख योजन ऊँचा सुदर्शन नाम का प्रसिद्ध महामेरु पर्वत शोभायमान है । वह मेरु पर्वत चूलिका-रूपी मुकुट से उन्नत है, जिन-प्रतिमा-रूपी कुण्डल से शोभायमान है। भगवान तीर्थंकर के जन्माभिषेक से वह अभिषिक्त है, देवों से सुशोभित है, जिनालय ही उसके उत्तम हार हैं, वन-रूपी वस्त्रों से वह मनोहर जान पड़ता है, वेदिका-रूपी करधनी पहने हुए है तथा बावड़ी-रूपी नाभि से वह सुन्दर मालूम होता है । पीठिका ही उसके पैर है, कूट-रूपी हाथों से वह सुशोभित है, उस पर आनेवाले विद्याधर ही उसकी भारी सेना हैं तथा चारण मुनियों से वह शोभायमान है । अनेक अप्सराएँ उसकी सेवा करती हैं, तीर्थंकर के स्नान का वह स्थान है, उस पर सदा नृत्य-गीत होते रहते हैं तथा सर-असर सब के लिए वह दर्शनीय है। वह अत्यन्त सुन्दर है, मनोहर है, सुन्दर आकतिवाला है, सब में श्रेष्ठ है, अत: सब लोग उसकी आराधना करते हैं तथा अनेक कुतूहलों से वह भरा हुआ है। जिस प्रकार सब इन्द्रों में सौधर्म इन्द्र शोभायमान होता है, उसी प्रकार सब पर्वतों में वह सुदर्शन नाम का | श्रेष्ठ पर्वत शोभायमान है ॥१०॥ उसी मेरु पर्वत की दक्षिण दिशा में भरत नाम का क्षेत्र है, जो कि धर्म की खान है एवं छः खण्डों से शोभायमान है। वह भरत-क्षेत्र शुभ कार्यों का स्थान है तथा पाँच सौ छब्बीस योजन छः कला (५२६ योजन ६ कला) चौड़ा है । जिस भरत-क्षेत्र में अनेक मुनि दीक्षा लेकर मोक्ष प्राप्त करते हैं, उस स्वर्ग मोक्ष के सुख का कारण भरत-क्षेत्र का वर्णन भला कौन कर सकता है ?
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