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हैं, ऐसे तीन परिषदों के देव भी इन्द्र के चतुर्दिक होकर चलने लगे । जिन का आशय उत्तम है एवं जो अंगरक्षक के समतुल्य हैं, ऐसे आत्मरक्षक देव भी अपने वाहन एवं आयुधों सहित इन्द्र के समीप जाकर खड़े हुए । कोतवाल के सदृश लोकपाल भी अपनी विभूति से साथ निकले एवं सेना के सदृश पूर्वोक्त सप्तरंगिणी शुभ सेना भी निकली ॥२४०॥ नगर निवासियों के समरूप प्रकीर्णक देव भी निकले एवं सेवा करनेवाले दासों के समान अभियोग्य जाति के देव भी निकले । चाण्डालों के समकक्ष स्वर्ग के अन्त में निवास करनेवाले अल्प पुण्यवान् एवं स्वल्प (थोड़ी) ऋद्धियों को धारण करनेवाले किल्विषिक जाति के देव भी स्वर्ग से निकले । इस प्रकार दश प्रकार के देवं अपनी-अपनी विभूति से सुशोभित होकर पुण्य सम्पादन करने के लिए सौधर्म इन्द्र के संग स्वर्ग से निकले । इन्द्र के चलते समय उनके समक्ष अप्सरायें नृत्य कर रही थीं एवं ऐसी प्रतीत होती थीं, मानो अन्य व्यक्तियों को प्रत्यक्ष दिखला रही हों कि इन्द्र के पुण्य का फल ऐसा ही होता है । रक्तकण्ठी किन्नरी देवियाँ भी श्री तीर्थंकर नामकर्म से उत्पन्न हुए भगवान श्री जिनेन्द्रदेव के गुणों को मधुर स्वर से वीणावादन के संग गाती हुई जा रही थीं । जन्म-कल्याणकोत्सव में सम्मिलित होने के लिए ईशान स्वर्ग का ऐशानेन्द्र भी अपनी देवियों को संग ले कर बड़ी विभूति के साथ अश्व पर सवार होकर केवल पुण्य सम्पादन करने की अभिलाषा से सौधर्म इन्द्र के संग स्वर्ग से निकला । ऐशानेन्द्र समस्त देवों से आवृत्त (घिरा हुआ) था । अपने धारण किए समस्त आभरणों के तेज से वह ऐशानेन्द्र समस्त दिशाओं को प्रकाशित कर रहा था । जिनके हृदय पुण्य से परिपूर्ण हैं, जो दिव्य मूर्ति को धारण करनेवाले हैं एवं जो धर्म में तत्पर हैं, ऐसे शेष सनत्कुमार आदि देवों के इन्द्र ने भी अपनी-अपनी विभूति के संग अपने-अपने वाहनों पर अपनी-अपनी इन्द्राणी एवं देवों को संग लेकर पुण्य कार्य के लिए सौधर्म इन्द्र के संग ही स्वर्ग से प्रस्थान किया। उस समय नगाड़ों के गम्भीर घोषों से तथा तमल 'जय-जय' नाद से देवों की सेना में अपार कोलाहल मच रहा था ॥२५०॥ कितने ही देव प्रसन्न होकर हास्य कर रहे थे, कितने ही नृत्य कर रहे थे, कितने ही फिरकी ले रहे थे, कितने ही अपने शारीरिक करतब दिखा रहे थे एवं कितने ही देव आगे-आगे दौड़ रहे थे । इन्द्रादि समस्त देव अपने-अपने विमानों में या पृथक्-पृथक् वाहनों के संग-संग समस्त व्योम को मानो अवरुद्ध करते हुए गमन करने लगे । संचरण करते हुए वाहनों एवं विमानों से व्योम-मण्डल व्याप्त हो गया तथा ऐसा प्रतीत होने लगा मानो पटलों के
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