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________________ T जा रहे थे । प्रथम रेखा में खड्ग नाम के मनोहर स्वर से भगवान के गुणों को गाते हुए मधुर कण्ठवाले देव गमन कर रहे थे । उनके पृष्ठ (पीछे) में ऋषभ स्वर में गाते हुए, उनके पश्चात् गान्धार स्वर में गाते हुए, उनके उपरान्त मध्यम स्वर से भगवान का गुणगान करते हुए देवगण थे । पंचम रेखा में पन्चम स्वर से, षष्ठ (छट्ठी) रेखा में धैवत स्वर से, सप्तम रेखा में निषाद स्वर से गाते हुए देव अपनी देवियों के संग चले जा रहे थे । वे देव वीणा, मृदंग, तुरही, झल्लरी आदि वाद्यों का वादन कर रहे थे, उनके स्वर मनोहर थे, वे दिव्य वस्त्र-माला आदि से सुशोभित थे, उनका आकार अत्यन्त सुन्दर था, अनेक प्रकार के गायन के रस में लीन, गीत-नृत्य आदि कलाओं में प्रवीण, उनकी मनोहर मुखाकृति दिव्य मूर्ति ज्ञानी धीर-वीर तीर्थंकरों के गुणों का वर्णन करने में दत्तचित्त थी एवं उनका स्वर गम्भीर था । भगवान के पुण्य सम्पादन करने के लिए वे देव अपनी-अपनी देवियों के संग उनके अनन्त गुणों जन्म-कल्याणोत्सव में को प्रकट करनेवाले तथा पुण्य सम्पादन करनेवाले अनेक प्रकार के मनोहर गीत गाते हुए संचरण कर रहे थे ॥ २९०॥ उनके पश्चात् नर्तकों की सेना थी, जिस की प्रथम रेखा में वस्त्राभरणों से सुशोभित एवं ध्वजायें लिए हुए भौरे के सदृश कृष्णवर्णी देव चल रहे थे। उनके पीछे सुवर्ण के दण्ड पर नीली ध्वजा फहराते हुए हस्त में चमर धारण किए हुए देव जा रहे थे । तृतीय रेखा में वैडूर्यमणियों के दण्डों पर श्वेत पु ध्वजायें लिए हुए देव जा रहे थे । चतुर्थ रेखा में मरकत मणियों के दण्डों पर गज, सिंह, वृषभ, दर्पण, मोर, चकवा, गरुड़, चक्र सूर्य आदि के पृथक्-पृथक् चिह्नों से अंकित सुवर्ण की सुन्दर ध्वजायें लिए हुए देव संचरण कर रहे थे । पंचम रेखा में विद्रुम के दण्ड में पद्म पुष्प के चिह्नवाली ध्वजायें हस्त में धारण किए हुए देव जा रहे थे । षष्ठ (छटठी ) रेखा में सुवर्ण के दण्ड में लगी हुई कुन्द पुष्प सदृश श्वेत ध्वजायें लिए हुए देवगण गमन कर रहे थे । सप्तम रेखा में मणियों के दण्ड में लगी मुक्तामालाओं से सुशोभित श्वेत छत्रों को हस्त में लिए हुए देव जा रहे थे। भगवान के जन्म-कल्याणकोत्सव में दिव्य वस्त्रों से, मालाओं से, मनोहर आभूषणों से सुशोभित, व्योम को प्रकाशित करते हुए एवं हस्त में ध्वजायें धारण किए हुए भृत्य जातिकी देव सेना जा रही थी ||२२०॥ इस प्रकार अपरिमित विभूति से सुशोभित एवं धर्म रस में लीन सौधर्म इन्द्र की सतरंगिणी सेना ने स्वर्ग से प्रस्थान किया । उसी समय नागदत्त नामक अभियोग्य जाति के देवों के अधिपति ने ऐरावत गजराज की रचना की । उस गजराज का वंश (पीठ की रा 1 ण श्री शां ति ना थ श्री शां ति ना थ पु रा ण २०१
SR No.002238
Book TitleShantinath Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSakalkirti Acharya, Lalaram Shastri
PublisherVitrag Vani Trust
Publication Year2002
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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