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हुए वे गज विभूतियों से सुशोभित थे एवं रत्नों के घण्टे उनक पीठ पर झूल रहे थे । मणि एवं पुष्पों की मालाएँ उन पर पड़ी हुई थीं, अनेक प्रकार की ध्वजाएँ उन पर फहरा रही थीं, श्वेत छत्र से उनकी कान्ति द्विगुणित हो रही थी एवं चमरों को वे ढुला रहे थे । सुवर्ण की श्रृंखला उनके पग (पैरों) में पड़ी हुई थीं, उनके चतुर्दिक लगी हुई छोटी-छोटी घण्टियाँ बज रही थीं; वे चित्ताकर्षक थे, उन पर आरूढ़ देव अपनी देवियों के संग अत्यधिक भव्य प्रतीत होते थे। भगवान के जन्म कल्याणक में अनेक सुन्दर आभूषणों से अलंकृत गजराजों (हाथियों) की श्रेणी संचरण करती हुई अत्यन्त भव्य प्रतीत होती थी, मानो गतिमान पर्वत ही हों। गजराजों के पृष्ठ (पीछे) में नर्तकों की सेना थी। उसमें से अनेक देव भगवान के जन्मोत्सव में जन्म कल्याणक का उत्सव मनाते दिव्य एवं उत्कृष्ट नृत्य करते आ रहे थे । अग्रिम रेखा में राजाधिराज, कामदेव एवं विद्याधर नरेशों के चरित्र प्रदर्शित करते हुए नर्तकगण उत्तम नृत्य कर रहे थे । द्वितीय रेखा में देवगण समस्त अर्द्ध महामण्डलेश्वर नृपतियों के शुभ आख्यान (चरित्र) प्रदर्शित करते हुए नृत्य कर रहे थे । तृतीय रेखा में वे देव व्योम में ही बलदेव, नारायण, प्रतिनारायण आदि विश्वविश्रुत शलाका पुरुषों के पराक्रमों को प्रदर्शित करते हुए नृत्य कर रहे थे । चतुर्थ रेखा में देव अपनी देवियों के संग षट खण्ड के अधिपति चक्रवर्ती नरेशों के गुणों का वर्णन करते हुए तथा उनके जीवन चरित्र प्रदर्शित करते हुए नृत्य | कर रहे थे । पंचम रेखा में देव-देवियाँ, चरम शरीरी मुनिराजों, लोकपालों एवं इन्द्रों के गुण एवं उन गुणों से प्रगट हुए चरित्र प्रदर्शित करती हुई नर्तकियाँ नृत्य कर रही थीं ॥२००॥ षष्ठ रेखा में देव अत्यन्त निर्मल बुद्धि को धारण करनेवाले महर्षि (अर्थात् तीर्थंकरों के गणधर) के गुणों से गुथे हुए चरित्र दर्शाते हुए नृत्य कर रहे थे । सप्तम एवं अन्तिम रेखा में नृत्य करने में तत्पर महा मनोहर देव अपनी देवियों के संग भावी तीर्थंकर के इस जन्म-कल्याणकोत्सव में प्रातिहार्य सहित अनन्तवीर्य के स्वामी चौंतीस अतिशयों से सुशोभित एवं पन्चकल्याणकों के द्वारा पूज्य उन तीर्थंकर (भगवान श्री जिनेन्द्रदेव) के गुण एवं महान चरित्र का वर्णन करते हुए नृत्य करते जा रहे थे । इन नृत्यरत देवों का अनुसरण कर रही थी गन्धर्व देवों की सेना । वे गन्धर्व देव दिव्य काया को धारण किए हुए थे, महा रूपवान तथा वस्त्र-आभूषणों से विभूषित कलावान थे, उनकी ध्वनि मधुर थी, वे उत्सव मना रहे थे. एवं मालाएँ धारण किए हुए थे । - भगवान के जन्म-कल्याणक में गन्धर्व जाति की सेना के देव सप्त स्वरों से अलंकृत मनोहर गान गाते हुए
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