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________________ Fb PF F (१५) जिसकी किरणें चारों ओर विकीर्ण हो रही हों, ऐसी रत्नराशि, (१६) कनक के सदृश निर्मल (धूम्र-रहित) अग्नि-ये षोडश स्वप्न मैंने देखे थे । हे स्वामिन् ! मुझ पर कृपाकर इन स्वप्नों के फलाफल का वर्णन कीजिए, क्योंकि मेरे हृदय में इनके जानने की आकांक्षा प्रबल हो रही है' ॥३०॥ तदनन्तर महाराज ने अपने अवधिज्ञान से उन स्वप्नों का फलाफल ज्ञात कर लिया एवं अपने प्रफुल्लित मुखकमल से महादेवी को एक-एक समझाकर कहने लगे-'हे देवी ! महान् अभ्युदय को प्रकट करनेवाले तेरे स्वप्नों का एकत्रित फल उत्तम पुत्र की प्राप्ति है । अब मैं पृथक-पृथक् फल कहता हूँ, तुम चित्त लगा कर सुनो। गजराज के देखने से तेरे महान यशस्वी तीर्थंकर पुत्र होगा; वह राज्य करेगा, समस्त संसार उसकी पूजा करेगा एवं तीनों लोकों का वह परम उपकारी होगा । महा वृषभ (बैल) के देखने से वह तीनों लोकों में सर्वश्रेष्ठ होगा एवं संसार में धर्म रूपी रथ को चलाने में वही समर्थ होगा । सिंह को देखने से से उसमें अनन्त शक्ति होगी एवं समस्त अशुभ कर्म रूपी गजराजों का मद निवारण करने के लिए तथा उनका विनाश करने के लिए वह सिंह के सदृश समर्थ होगा। दो मालाओं के देखने से वह अनेक प्रकार के सुख प्रदायक धर्म तीर्थ का कर्ता होगा । लक्ष्मी के देखने से सब इन्द्रों के द्वारा क्षीरसागर के जल से मेरु पर्वत के ऊपर उसका महा ऋद्धियों को सूचित करनेवाला महाभिषेक होगा । पूर्ण चन्द्रमा के अवलोकन से वह जीवों को प्रसन्न करनेवाला एवं समस्त संसार को आनन्द देनेवाला होगा एवं धर्म रूपी अमृत की महावृष्टि से भव्य (प्राणी) रूपी धान्यों को सींचनेवाला होगा । सूर्य के देखने से संसार के समस्त रूपों पर विजय पानेवाला होगा । सूर्य समतुल्य कान्ति होगी । वह कामदेव, अत्यन्त रूपवान एवं तीर्थंकर होगा तथा दिव्य परमाणुओं से उसकी देह की रचना हुई होगी। दो कलशों के देखने से उसे अखण्ड निधियाँ प्राप्त होंगी, वह धर्म रूपी अमृत से भरपूर होगा, तीर्थंकर होगा, अनेक ऋद्धियों से सुशोभित होगा एवं समवशरण की विभूति उसे प्राप्त होगी ॥४०॥ दो मत्स्यों को देखने से मनुष्यलोक तथा स्वर्गलोक के समस्त सुख उसे प्राप्त होंगे तथा उसका हृदय सम्पूर्ण जीवों पर दया करनेवाला होगा । सरोवर के देखने से उसकी काया पर एक शतक अष्ट (१०८) लक्षण तथा नौ शतक (९००) व्यन्जन होंगे । वह कला एवं विज्ञान में प्रवीण (चतुर) होगा । समुद्र के देखने से वह अनन्त दर्शन, अनन्त ज्ञान तथा अनन्त वीर्य का धारक होगा तथा रत्नत्रय आदि रत्नों की खानि होगा । सिंहासन के देखने से वह जगत्गुरु जिनेन्द्र भगवान इन्द्र, नरेन्द्र आदि FFFF १८८
SR No.002238
Book TitleShantinath Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSakalkirti Acharya, Lalaram Shastri
PublisherVitrag Vani Trust
Publication Year2002
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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