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फल बतलाये गए हों जिसमें तीर्थकर के पुण्य से उत्पन्न होनेवाली तथा इन्द्र के द्वारा रचना की हुई तथा संसार को चकित करनेवाली श्रीअरहन्तदेव की महिमा इस संसार में प्रगट की गई हो, जिसमें पुण्य से प्रगट होनेवाले तथा समर्थशाली बलभद्र, नारायण, प्रतिनारायण, कामदेव और चक्रवर्तियों के गुण निरूपण किये गए हों, जिसमें अनेक मुनीश्वर सब तरह के परिग्रहों का त्याग कर तथा अनेक तरह के उपसर्ग और परिषहों को सहन कर मोक्ष प्राप्त करते हैं, जिसमें स्वर्ग-नरंक की रचना हो रही है। ऊर्ध्वलोक, मध्यलोक, | अधोलोक से जिसके तीन भेद हैं एवं जो द्रव्य से परिपूर्ण है, ऐसे चराचर समस्त जगत् (लोक) का वर्णन हो, जिसमें मुनियों का श्रेष्ठ आचरण निरूपण किया गया हो तथा गृहस्थों की पुण्य-वृद्धि करानेवाले श्रावकाचार का वर्णन किया गया हो तथा संसार में जितने शुभ या अशुभ पदार्थ विद्वानों के द्वारा कहे गए हैं, जो कि अनेक गुणों से विराजमान तथा सत्यार्थ हैं, उन सब का वर्णन जिसमें हो, उसको धर्म-कथा कहते हैं ॥४०॥ जिससे मनुष्यों का राग नष्ट हो जाए एवं संवेग (संसार से डर या वैराग्य) बढ़ जाए, ऐसी धर्म-कथा ही संसार में धर्मात्मा पुरुषों को सुननी चाहिए । जिस कथा के सुनने से अशुभ-कर्मों का संवर तथा निर्जरा हो तथा पुण्य-कर्मों का आस्रव हो, ऐसी कथा ही लोगों को सुननी चाहिये । जिससे जीवादिक तत्वों का, पुण्य-पाप, का हित-अहित का, हेय (त्यागने योग्य)-उपादेय (ग्रहण करने योग्य) का तथा मोक्ष का ज्ञान हो, ऐसी कथा ही बुद्धिमानों को सुननी चाहिए । जो कथा श्रीजिनेन्द्रदेव की कही हुई हो | तथा ईर्ष्या या राग-द्वेष रहित मुनियों के द्वारा कही गई हो, ऐसी सब तरह की धर्म-कथायें धर्म की वृद्धि |
के लिए सुननी चाहिए । जिनमें श्रृंगार आदि रसों का वर्णन हो, ऐसी अन्य कथायें कभी नहीं सुनना चाहिए; क्योंकि ऐसी कथायें, खोटे मार्ग में चलनेवाले धूर्त लोगों ने, संसार में लोगों को ठगने के लिए बनाई हैं ॥९०॥ जिससे राग की वृद्धि हो तथा वैराग्य नष्ट हो जाता हो, ऐसी कथा अपनी आत्मा का कल्याण चाहनेवाले लोगों को प्राणों का नाश होने पर भी कभी नहीं सुननी चाहिए। जिस कथा के द्वारा हिंसा-युद्ध आदि का वर्णन किया जाता हो, ऐसी राज्य-कथा, भोजन-कथा, स्त्री-कथा, चोर-कथा, आदि विकथा बुद्धिमानों को कभी नहीं सुननी चाहिए; क्योंकि ऐसी कथाओं के सुनने से पाप कर्मों का ही आस्रव होता है । जिन कथाओं के सुनने के चित्त मे विकार उत्पन्न करनेवाला क्षोभ प्रगट हो तथा आर्तध्यान तथा रौद्रध्यान उत्पन्न हों, ऐसी कथायें भी बुद्धिमानों को नहीं सुननी चाहिए । जो कथायें मिथ्या
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