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ऐसे अन्य गुणी लोग ही धर्म को स्वीकार करते हैं । जो ज्ञानरहित हैं, परन्तु चरित्रवान हैं; यदि वे प्राणियों को धर्म का उपदेश देते हैं, तो उनके उपदेश की अल्पज्ञानी मूढ़ लोग हँसी उड़ाया करते हैं।
इसलिए ज्ञान एवं चारित्र से उत्पन्न होनेवाले वक्ता के दो ही मुख्य गुण हैं, उन्हीं से लोग इस संसार में श्रेष्ठ धर्म स्वीकार किया करते हैं । जिनके हृदय में विवेक विराजमान है तथा उसी के द्वारा जो 'यह व्याख्यान या शास्त्र योग्य है अथवा अयोग्य है'-इस प्रकार शीघ्रता के साथ विचार करते, उसमें से जो योग्य एवं श्रेष्ठ व्याख्यान है, उसे ग्रहण करते तथा जो असार है अथवा पहिले का ग्रहण किया हुआ है, उसे छोड़ देते, जो गुरु की भक्ति करने में तत्पर, किसी त्रुटि पर कभी हँसते नहीं; क्षमा, शौच आदि गुणों से सुशोभित, भगवान अरहन्त देव के कहे हुए वचन-रूपी अमृतों में सदा लीन रहते, व्रत एवं शील से शोभायमान अनेक तरह के उत्तम गुणों से तथा आर्जव आदि (मार्जव, सत्य, शौच, त्याग, भोग, ऐश्वर्य, गांभीर्य, स्थैर्य, धैर्य, सौभाग्य, तप, पूजा) से उत्पन्न होनेवाले अनेक गुणों से इस संसार में शोभायमान हैं, इत्यादि ऊपर कहे हुए अनेक गुण जिनमें विराजमान हैं, ऐसे पुरुष ही श्रेष्ठ धर्म-कथा को सुनने के लिए निपुण गिने जाते हैं। जिनमें ये गुण नहीं, वे शास्त्रों के सुनने के कभी अधिकारी नहीं है ॥७॥
जो विचार करने में चतुर हैं, ऐसे श्रोता के सामने ही धर्म तथा संवेग को प्रकट करनेवाला गुरु का कहा हुआ व्याख्यान शोभा देता है । जिस प्रकार अन्धे के सामने नृत्य करना व्यर्थ है एवं बहिरे के सामने अच्छे गीत गाना व्यर्थ है, उसी प्रकार जो योग्य श्रोता नहीं है, उसके सामने मुनि का कहा हुआ व्याख्यान व्यर्थ हो जाता है । इसलिए सबसे पहिले ग्रन्थ के चतुर श्रोता का सन्धान करना चाहिए; क्योंकि अच्छे श्रोताओं से ही इस संसार में ग्रन्थ की अच्छी प्रतिष्ठा होती है अब धर्म कथा का स्वरूप बतलाते हैं । जिनमें जीव-अजीव आदि सातों तत्वों का निरूपण किया गया हो, जिसमें उत्तम पुरुषों के शरीर, संसार तथा भोगों से वैराग्य प्रगट करनेवाले अनेक कारण बतलाये गए हों, जिसमें उत्तम दान-तप-शील-व्रत आदि कहे गए हों, बन्ध-मोक्ष का लक्षण, उनके कारण एवं फल बतलाये गए हों, जिसमें सब जीवों को अभयदान देनेवाली प्राप्पियों की दंया प्रगटाई गयी हो, ज़िस कथा में अठारह हजार शीलों से सुशोभित मुनियों के मोक्ष की प्राप्ति बतलाई गए हों, जिसमें इस संसार में उत्पन्न होनेवाले प्राणियों के धर्मअर्थ-काम-मोक्ष--चारों पुरुषार्थ बतलाये गए हों तथा चारों गतियों में होनेवाले जीवों के पुण्य-पाप के
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