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नमस्कार करता हूँ। जो केवलज्ञान के स्वामी एवं श्रेष्ठ धर्म-रूपी अमृत की वर्षा करने से इस संसार में मेघ (बादलों) की उपमा को प्राप्त हुए हैं, ऐसे श्री सुधर्माचार्य की भी मैं वन्दना करता हूँ। जिन्होंने अपने बाल्यकाल में ही वैराग्य-रूपी तलवार के द्वारा काम एवं मोह-रूपी शत्रु को नाश कर दिया, ऐसे सर्वोत्कष्ट श्री जम्बूस्वामी को भी मैं नमस्कार करता हूँ । सर्वश्री विष्णु, नन्दिमित्र, अपराजित, गोवर्द्धन एवं भद्रबाहु-ये पाँचों ही मुनिराज श्रुतकेवली थे, श्रुतज्ञान-रूपी महासागर के पारंगत थे एवं धर्म-रूपी श्रेष्ठ मार्ग के प्रवर्तक थे; इसलिए इन्हें भी मैं प्रणाम करता हूँ । श्री विशाखाचार्य से प्रारंभ लेकर अन्य बहुत-से आचार्य, जो कि धर्म को प्रगट करने के लिए दीपक के समान हैं, उन प्रत्येक की भी मैं अपने मंगल के लिए वन्दना करता हूँ। भव्य जीवों को उपदेश देनेवाले महाकवीश्वर एवं देवों के द्वारा पूज्य ऐसे आचार्य श्री कुन्दकुन्द को भी मैं उनके गुणों को प्राप्त करने के लिए नमस्कार करता हूँ। जिनके वचन निष्कलंक हैं, जो कवीश्वर, वादी तथा संसार-मात्र का भला करनेवाले हैं, ऐसे श्री अकलंक देव को भी मैं सदा नमस्कार करता हूँ ४०। महाकवीश्वर तथा शुद्ध चैतन्य स्वरूप श्री समन्तभद्र स्वामी को भी मैं नमस्कार करता हूँ तथा बड़े-बड़े विद्वान लोग जिनकी पूजा करते हैं, ऐसे पूज्यपाद को भी मैं नमस्कार करता हूँ। सिद्धान्त-शास्त्र के पारगामी श्री नेमिचन्द्राचार्य को मैं नमस्कार करता हूँ तथा इस संसार में चन्द्रमा की उपमा को धारण करनेवाले श्री प्रभाचन्द्र को भी नमस्कार करता हूँ। इनके अतिरिक्त जिनसेन आदि जो अनेक आचार्य हुए हैं, जो कि सम्यग्दर्शन आदि गुणों से सुशोभित, चतुर, ज्ञान-विज्ञान के पारगामी, सदा धर्म को प्रभावना करनेवाले हैं तथा जिन्हें मुक्ति.के समागम की सदा लालसा लगी रहती है, ऐसे आचार्यों के चरणकमलों को भी मैं इस ग्रन्थ के प्रारम्भ में मंगल के लिए नमन करता हूँ। इस ग्रन्थ के प्रारम्भ में जिन कवियों की वन्दना की है, पूजा की है एवं स्तुति की है, वे सब कवि मेरी बुद्धि को सब शास्त्रों में पारगामिनी एवं सर्वोत्तम कर देवें । जो श्रीवर्द्धमान स्वामी के मुखारविन्द से प्रगट हुई है, जिसे गणधर देव नमस्कार करते हैं, सौधर्म आदि सब इन्द्र तथा चक्रवर्ती पूजते हैं, जो श्रेष्ठ मोक्षमार्ग को प्रकाशित करनेवाली है, सर्वोत्तम है; अज्ञान-रूपी अन्धकार का नाश करनेवाले हैं, तीनों लोक जिसकी सेवा करता है, जो अंगों तथा पूर्यों में बँटी हुई है तथा स्वर्ग तथा मोक्ष की प्रदायक है; ऐसी सरस्वती देवी को मैं सम्यग्ज्ञान, विवेक तथा मोक्ष प्राप्त करने के लिए व आत्मा के कल्याणार्थ मस्तक झुका कर सदा नमस्कार
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