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॥ श्री शान्तिनाथाय नमः ॥
श्री शान्तिनाथ पुराण
मंगलाचरण
नमः श्री शान्तिनाथाय, जगच्छान्ति विधायिने । कृत्स्नकर्णौघशान्ताय शान्तये सर्वकर्मणाम् ॥१ ॥
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अर्थ--जो समस्त संसार को शान्ति देने वाले हैं तथा समस्त कर्मों के समूह को शान्त वा नष्ट करने पु वाले हैं, ऐसे श्री शान्तिनाथ भगवान को मैं (ग्रन्थकर्त्ता श्रीभट्टारक सकलकीर्ति) समस्त कर्मों को शान्त या नष्ट करने के लिए नमस्कार करता हूँ। जो इस संसार में सोलहवें तीर्थंकर के नाम से प्रसिद्ध हुए हैं, समस्त देव जिनकी पूजा करते हैं, जो तीनों लोकों में प्रसिद्ध हैं, संसार रूपी समुद्र से पार हो चुके हैं, जो इस संसार में पाँचवें चक्रवर्ती के नाम से प्रसिद्ध हैं, जिन्हें समस्त राजा-महाराजा, सब देव एवं सब विद्याधर नमस्कार करते हैं, जो कर्मों को नाश करने वाले जिनों के भी स्वामी हैं, जो कामदेव के नाम से प्रसिद्ध हैं, तथापि कामदेव को भी जीतने वाले हैं, जो अतिशय रूपवान हैं, जो जिनेन्द्र हैं एवं जिन्होंने तीनों लोकों में अनेक गुण स्थापित किए हैं, ऐसे श्री शान्तिनाथ भगवान के दोनों चरणकमलों को मैं उनके समस्त गुण समूह की सिद्धि एवं प्राप्ति के लिए, नमस्कार करता हूँ। श्री शांतिनाथ के उन दोनों ही चरणकमलों में अनेक शुभ लक्षण विराजमान हैं एवं उनकी श्री गणधर देव भी सदा वन्दना करते रहते
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