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-रूप तप का नाश कर सम्यग्दृष्टि भव्यजीवों को रत्नत्रम रूप मार्ग दिखलाते हैं, उसी प्रकार अन्धकार का नाश करता हुआ आदित्य उदय हुआ । हे राजन ! शयन को शीघ्र छोड़कर सुख के सागर जिनेन्द्रदेव के स्तवन- पाठ आदिक धार्मिक • कार्य रूप ध्यान को अपनी शक्ति के अनुसार करो। हे राजन् ! वह धर्म आपकी रक्षा करे जो अनेक सुखों की खान है, एवं गुणों का भण्डार है । धार्मिक उसी धर्म का पालन करते हैं । मुक्ति देने वाले उस धर्म को नमस्कार हो । इस संसार में धर्म के बिना जीवों का कोई दूसरा हितकारी नहीं है । चित्त की शुद्धि ही धर्म का प्रधान कारण है, इसलिए, हे राजन् ! आप चित्त को उस धर्म में लगाओ । (६३-७०)
चतुर्थ सर्ग
मैं ( यशोधर ने अपनी शैय्या से उठकर सामायिक आदिक धार्मिक क्रिया करके स्नानगृह में जाकर स्नान किया। जब नेपथ्यशाला में आये हुए मुझे वस्त्र -पहिनने को दिये तब मैंने अपने चित्त में विचार किया । संसार के मानव अपनीअपनी स्त्रियों की प्रसन्नता और चित्त में कामराग उत्पन्न करने के लिए वस्त्र पहनते हैं, स्त्री-प्रेम तो मैंने आज रात को देख लिया इसलिए अब मुझे अलंकार पहिने में कोई औचित्य प्रतीत नहीं होता है । अथवा सभा के सदस्य आज मेरे सुन्दर वस्त्र और अलंकार न पहिनने का कारण पूछेंगे, लेकिन वह पापिन कुटिल बुद्धिवाली यह वृतान्त सुनकर अपने मायाचरण के डर से स्वयं ही मर जायेगी. या मुझे ही मार डालेगी, इसलिए विरागवृत्ति से मुक्त होकर मैं इन वस्त्रों को आज धारण किये लेता हूँ । वन्दनमाला और पताकाओं से सुशोभित सुन्दर सजावट वाली सभा में जाकर मैं विरागवृत्ति के साथ स्वर्ण - निर्मित सिंहासन पर बैठ गया, उस समय सामन्त, नृप और मंत्रि महोदय ने आ-आकर मुझे प्रणाम किया और अवसर पाकर सभी लोगों ने मेरे चरण-कमलों में विनयपूर्वक अपना मस्तक झुकाया ।
राजा,
मंत्रिगण और सामंतगण अपने-अपने योग्य स्थानों पर बैठ गये तब मेरे कल्याण व प्रजा में सुख शान्ति होने के लिए अज्ञान के नाशक स्व पर प्रकाशक तथा जिनमुखोद्भुत शास्त्र का पठन जैन पंडित ने किया । (१-१०)
इस अवसर पर अपनी परिचारिकाओं के साथ मेरी माता राजसभा में आयीं । हर्ष से मैंने माताजी को प्रणाम किया। माता ने मेरे लिए अनेक प्रकार के सौभाग्यादि गुणों के वर्धक आशीर्वाद दिये । माता ने आसन पर बैठकर मेरा कुशल मंगल पूछा, तब तप धारण करने की इच्छा से मैंने माता से कहा, हे अंब ! आपके चरणों के प्रसाद से मेरा और मेरे राज्य में सब कुशल मंगल है | किन्तु