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मेरे मामा ससुर ने विधिपूर्वक मुझे जो समर्पित की और जिसने तरुण अवस्था में मेरे समान ही गुणशाली पुत्र पैदा किया उस रानी का वध करने से संसार में मेरा अपयश होगा । स्त्री-हत्या का पाप भी मुझे लगेगा और उसके वध से मुझे लज्जित भी होना पड़ेगा। ऐसा विचार कर असि को म्यान में रखकर अपनी सेज पर जाकर पड़ गया और मन में खेदखिन्न होकर बाब-बार ऐसा सोचने लगा। (२६-३८) ___ यह स्त्री समस्त दु:खों की जननी है, अधर्म को पैदा करने वाली है, स्वर्ग के मार्ग को रोकने के लिए अर्गला है-प्रतिबन्धक है, दुष्ट है, सर्व अनर्थों को करने वाली है, नरकमहल की प्रतोली है, मनुष्यों को ठगने में कुशल है, दूसरों पर प्रेम करने वाली है, अत्यन्त पापों से युक्त है, माया आदिक अनेक दोषों की खान है, माया की बेल है, धी धन से रहित है, धर्म रूप रत्नों को चुराने वाली है, पुरुष रूपी मृगों को बाँधने के लिए पाश-रज्जु के समान लोक की दृढ़ शृंखला है । यह स्त्री वेदना रूप है, महादुखों को देने वाली है, दुष्ट आशय से परिपूर्ण है । यह दान रूप तेल का नाश करने वाली है। मछली की तरह अत्यन्त चपल है, कामाग्नि को जिलाने के लिए यह ईंधन के समान है । वक्र मुख वाली है, संसार की कारण है और मुक्ति रूपी कान्ता को भय पैदा करने वाली है। यह कुटिल नारी हृदय में किसी अन्य का चिन्तवन करती है, वार्तालाप किसी दूसरे के साथ
करती है और शरीर में किसी अन्य के साथ भोग करती है। यह नरक जाने वाली • है और पापों से परिपूर्ण है । (३९-४४)। . इस स्त्री-शरीर में कोई सारभूत वस्तु नहीं है । यह स्त्रीशरीर चर्म से बंधा
हुआ हड्डियों का समुदाय है, स्वभाव से ही घृणा का जनक है, निंदनीय है, रज - और वीर्य से पैदा हुआ है। यह नारी का शरीर सात धातुओं का पिण्ड है, अभ्यन्तर में अत्यन्त अपवित्र है, गौर वर्म से आच्छादित है और बाहर सुन्दर-सुन्दर वस्त्र
और आभूषणों से सुशोभित है । नारी का मुख श्लेष्म-कफ आदि घृणित वस्तुओं से -युक्त है । उदर मलमूत्र आदि वस्तुओं से भरा है और योनि नरक के बिल के समान है। भला कौन विवेकशील मानव ऐसी नारी में रति-आसक्ति करेगा । कामज्वर से पीड़ित मानवों के नेत्रों को आनन्द देने वाले मल-मूत्रादिक घृणित पदार्थों को बहाने वाले इस नारी-शरीर में विवेकी पुरुषों को कैसे रति-प्रेमाशक्ति हो सकती है ! जो पुरुष विषय-भोगों के सेवन से कामाग्नि का दाह मिटाना चाहते हैं, वे अत्यन्त शठ हैं । वे शठ कामातुर-तैल से आग बुझाने का प्रयत्न करते हैं। स्त्री के शरीर के संघर्ष से पैदा होने वाली तृष्णा का जनक, निन्दनीय और ग्लानि का जनक वह मैथुन सज्जन पुरुषों को कैसे आनन्द पैदा करेगा? कौन विवेकी इन भोगों का भोग करेगा जो भोग पंचेन्द्रियों से उत्पन्न होते हैं, दु:ख के कारक हैं,