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________________ यशोधरचरित्रम् चित्रकारिता में रेखा, रूप, वर्ण, ताल और अन्तराल का विशेष महत्त्व होता है। रेखाओं और रंगों के सम्यक् विधान से चित्र की विशेषता देखी जाती है। पश्चिमी शैली में प्रारम्भतः हरे रंग का प्रयोग कम और नीले रंग का सर्वाधिक हुआ। विषय की सूक्ष्मता पर मुगल, राजपूत, राजस्थानी शैली में अधिक ध्यान रखा गया । यह वस्तुत: अपभ्रंश काल था जिसमें कथानकों को विविध रंगों में. गहनता और सूक्ष्मतापूर्वक रंगा गया। इसलिए इसे अपभ्रंश शैली भी कहा . जाता है । इसके बाद पहाड़ी शैली का भी प्रभाव दिखाई देता है । मुगल शैली . में ईरानी और भारतीय शैलियों का संमिश्रण रहा है। राजस्थानी शैली १५०० से १६०० ई० तक देखी जाती है जिसमें भारतीय और मुगल शैली को एक साथ अपनाया गया । सुनहरे रंगों के प्रयोग में वक्ररेखा और वेशभूषा पर फारसी. शैली का प्रभाव दृष्टव्य है । यही अपभ्रंश शैली मुखरित हुई है। यशोधरचरित की प्रस्तुत सचित्र पाण्डुलिपि राजस्थानी चित्र शैली का प्रतिनिधित्व करती है। इसमें राजस्थानी शैली की अलंकारिता तथा मुगल शैली की सूक्ष्मरेखांगन पद्धति में भड़कीली रंगयोजना का सुन्दर समवन्य हुआ है। लूणकरण मन्दिर की इस प्रति के कतिपय महत्त्वपूर्ण चित्रों को हम यहाँ पाठकों और अध्येताओं की जानकारी के लिए दे रहे हैं। चित्र-फलक विवरण 1. आदि तीर्थंकर ऋषभदेव का स्तुति-दृश्य। . , 2. मारिदत्त राजा का राजभवन दृश्य । 3. राजपुर नगर के राजा मारिदत्त का वैभव दृश्य तथा भैरवानन्द कापा लिक का आगमन । 4. चण्डमारी मन्दिर में भैरवानन्द के कथनानुसार आकाशगामिनी विद्या प्राप्ति के उद्देश्य से मारिदत्त द्वारा यज्ञबलि के निमित्त एकत्रित पशु युगल । 5. आचार्य सुदत्त ससंघ राजनगर के बाह्योद्यान में। शृंखलाबद्ध क्षुल्लक युगल का राजा के समक्ष प्रस्तुतीकरण । 6. राजा मारिदत्त द्वारा क्षुल्लक-युगल पर प्रहार की तैयारी। 7. यशोधर के प्रथमभव से संबद्ध कथानक । अवन्ती देश की उज्जयिनी . नगरी के राजा यशोधर और महारानी चन्द्रमती के पुत्र यशोधर का बाराट(बरार) देश के राजा विमलवाहन की पुत्री अमृतमती के साथ
SR No.002236
Book TitleYashodhar Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain
PublisherSanmati Research Institute of Indology
Publication Year1988
Total Pages184
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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