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४.४२१]
प्राकृतव्याकरणम् ।
सहस्य सहूं।
जैउ पवसन्तें सहुँ न गय न मुअ विओएँ तस्सु ।
लजिजइ संदेसडा दिन्ताह सुहय-जणस्सु ॥ ३ ॥ नहेर्नाहिं।
एत्तहें मेह पिअन्ति जलु ऍत्तहें वडवानल आवट्टइ । पेक्खु गहीरिम सायरहो एक वि कणिअ नाहिं ओहेट्टइ ॥४॥ पश्चादेवमेवैवेदानी-प्रत्युतेतसः पच्छइ एम्बइ जि एम्वहिं
पञ्चलिउँ एत्तहे ॥ ४२० ॥ अपभ्रंशे पश्चादादीनां पच्छइ इत्यादय आदेर्शी भवन्ति ॥ पश्चातः पच्छइ । पच्छइ होइ विहाणु [ ३६२.१] ॥ एवमेवस्य एम्वइ । एम्वइ सुरउ समत्तुं [ ३३२.२] ।। एवस्य जिः ।
जाउ म जन्तउ पल्लवह देवखउँ कइ पय देइ ।
हिअइ तिरिच्छी 'हउँ जि पर पिउ डम्बरइँ करेइ ॥ १॥ इदानीम एम्वहिं।
हरि नच्चाविउँ पैङ्गणइ विम्हइ पाडिउ लोउ । ___ एम्वहिं सह-पओहरहं जं भावइ तं होउ ॥ २ ॥ प्रत्युतस्य पञ्चलिउ।
__ साव-सलोणी गोरडी नवखी क वि विस-गण्ठि । . भडु पैञ्चलिओ"सो मरइ जासु न लग्गइ कण्ठि ॥ ३ ॥ . इतस एत्तहे । एत्तहें मेह पिअन्ति जलु [४१९.४ ] ॥ ... ' . विषण्णोक्त-वर्त्मनो उन्न-वुत्त-विच्चं ॥ ४२१ ॥
अपभ्रंशे विषण्णोदीनां वुन्नादय आदेशा भवन्ति । १P जओ पवसन्तेण सहुँ न मुइअ विउएं तस्स; B जउ पविसंते न सहुँ मुइअ तसु अ विउएं तस्स. २P देन्तिहिं; B देंतेहिं. ३ A एत्तहि. ४ A °नले; P°णल. ५ B उहट्टइ. ६ A °म्वहि. ७ P पच्चल्लिउ; B पञ्चुलिउ. ८ B °शावाभ'. ९ B समत्रु. १. PB दिक्खउं. २१ B°पइ. १२ B हीइ. १३ A तिरच्छी. १४ B हुजि. १५ B°विउं. १६ P प्रा. १७ B राअ°. १८ B पञ्चुलिउ. १९ PB °लिउ. २० B°षण्णदी.