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________________ देवनापति प्रकरण भजन करे, खलाना शस्त्र और राज्य की ध्वजा को फेंक देवे, टेढ़े मुखवाली हो जाए, एक स्थान से दूसरे स्थान भ्रमण करे, इत्यादि अनेक प्रकार के उपद्रव अकस्मात् देखने में आवे तो वहाँ निवास नहीं करना चाहिये। कारण यह वहाँ के राजा का तथा देश का विनाश कारक है। तथा देव यात्रा (रथ यात्रा) महोत्सव में उत्पात को देखकर देश को भयदायक कहना। 23. पह-58. विवेकविलास अ. ८ श्लोक २२ में कहा है कि"पक्षमासर्तुषण्मास-वर्षमध्ये न चेत्फलम्। . रिष्टं तद्व्यर्थमेव स्या-दुत्पन्ने शान्तिरिष्यते ॥” एक पक्ष, मास, दो मास, छः मास या एक वर्ष में यदि उत्पात का फल न होवे तो वह उत्पात निष्फल जानना और फल दीख पड़े तो उसकी शान्ति करानी चाहिये। दिन नक्षत्र से फल विपाक"मासैरष्टभिराग्नेये द्वाभ्याँ वायव्यके पुनः । मासेन वारुणे सप्तरात्रामाहेन्द्रके फलम् ॥” वि. उ. ८ श्लोक २९ 'अग्निमण्डल नक्षत्र में उत्पन्न हुआ उत्पात आठ मास में, वायु मण्डल नक्षत्र में उत्पन्न हुआ उत्पात दो मास में, वारुण मण्डल नक्षत्र में उत्पन्न हुआ उत्पात एक मास में और माहेन्द्र मण्डल में उत्पन्न हुआ उत्पात सात दिन में फलदायक है। . 24. पद्य-62. इस ग्रंथकार मण्डन सूत्रधार रचित राजवल्लभ ग्रन्थ में कहा है कि भरणी, कृत्तिका, पुष्य, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, विशाखा और पूर्वाभाद्रपद ये सात नक्षत्र अग्निमण्डल है। अश्विनी, मृगशीर्ष, पुनर्वसु, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा और स्वाति ये सात नक्षत्र वायु मण्डल के है। आH अश्लेषा, मूल, पूर्वाषाढा, शतभिषा, उत्तराभाद्रपदा और रेवती ये सात नक्षत्र वारुण मण्डल के हैं। रोहिणी, अनुराधा, ज्येष्ठा, उत्तराषाढा, अभिजित, श्रवण और धनिष्ठा ये सात नक्षत्र माहेन्द्र मण्डल के हैं। इन चार मण्डलों में वारुण और माहेन्द्र मण्डल में उत्पन्न हुआ उत्पात का फल शुभ माना है। विशेष जानना चाहें तो देखें मेरा अनुवादित 'मेघ महोदय वर्ष प्रबोध' ग्रन्थ। . ..
SR No.002234
Book TitleDevta Murti Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Bhagvandas Jain, Rima Jain
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year1999
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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