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देवतामूर्ति-प्रकरणम् वह भौम उत्पात कहा जाता है। “भौमे त्वल्पफलं ज्ञेयं चिरेण च विपच्यते ॥ अभ्रजं मध्यफलदं मध्यकालफलप्रदम्। अद्भुते तु समुत्पन्ने यदि वृष्टिः शिवा भवेत् ।। सप्ताहाभ्यन्तरे ज्ञेयमद्भुतं निष्फलं भवेत् । अद्भुतस्य विपाकश्च विना शान्त्या न दृश्यते ॥” अ. २२९ भौम उत्पात न्यून फल दायक है, बहुत समय में उसका फल नाश हो जाता है। अंतरिक्ष उत्पात मध्यम फलदायक है, वह मध्य समय में फल देता है। उत्पात होने के बाद यदि वर्षा हो जाय तो उत्पांत की शांति .हो जाती है। उत्पात होने के बाद सात दिन के भीतर उसका फल होता है, सात दिन के बाद उत्पात का फल निष्फल होता है। यदि उत्पात का फल दिखने में आवे, तो उसकी शांति किये बिना शांत नहीं होती।
22. प.-51.. मत्स्यपुराण अ. २३० श्लोक १-५ में विशेष कहा है कि“देवतार्चा: प्रनृत्यन्ति वेपन्ते प्रज्वलन्ति च । वमन्त्यग्नि तथा धूमं स्नेहं रक्तं तथा वसाम् ॥ आरटन्ति रुदन्त्येता: प्रस्विद्यन्ति हसन्ति' च ॥ उत्तिष्ठन्ति निषीदन्ति प्रधावन्ति दमन्ति च। भुञ्जन्ते विक्षिपन्ते वा कोश-प्रहरणध्वजान्।। अवाङ्मुखा वे तिष्ठन्ति स्थानात् स्थानं भ्रमन्ति च ॥ एवमाद्या हि दृश्यन्ते विकारा: सहसोत्थिता:॥ लिङ्गायतनविप्रेषु तत्र वासं न रोचयेत् ॥ राज्ञो वा व्यसनं तत्र स च देशो विनश्यति। देवयात्रासु चोत्पातान् दृष्ट्वा देशभयं वदेत् ॥” यदि देव प्रतिमा नाचे, कम्पायमान होवे, प्रकाशमान होवे, अग्नि, चूंआ, चिकना पदार्थ, लोह या वसा (चर्बी) इनका वमन- करे, शब्द रटन करे, रोवे, पसीना युक्त हो जाय, हंसे, खड़ी होवे, बैठे, दौड़े, भयंकर शब्द करे,