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________________ ... देवतामूर्ति-प्रकरणम् “कन्यादि त्रिषु पूर्वतो यमदिशि त्याज्यं च चापादितौ, द्वारं पश्चिमतस्त्रिके जलचरात् सौम्ये रवौ युग्मतः । तस्माद् व्यस्तदिशामुखं तु भवन–द्वारादिकं हानिकृत, सिंहं चाथ वृषं च वृश्चिक-घटे याते हितं सर्वतः ।।” कन्या, तुला और वृश्चिक ये तीन राशि के सूर्य में वत्स का. मुख पूर्व दिशा में, धन, मकर और कुंभ ये तीन राशि के सूर्य में वत्स का मुख दक्षिण में, मीन, मेष और वृष ये तीन राशि के सूर्य में वत्स' का मुख पश्चिम दिशा में, तथा मिथुन, कर्क और सिंह ये तीन राशि के सूर्य में वत्स का मुख उत्तर दिशा में रहता है। इसलिये वत्स के सन्मुख और पीछाड़ी में गृहद्वार आदि का कार्य करे तो हानि कारक होता है। परन्तु सिंह, वृषभ, वृश्चिक और कुंभ इन चार राशि के सूर्य में चारों दिशा में द्वार आदि का कार्य कर सकते हैं। ठक्कुर फेरु कृत वास्तुसार प्र. १ गा.. ३१. में विशेष रूप से कहा है कि “अग्गिमओ आउहरो धणक्खयं कुणइ पच्छिमो वच्छो। वामो अ दाहिणो वि अ सुहावहो हवइ नायव्वो॥” सन्मुख वत्स हो तो आयुष्य का नाश करता है और पीछाड़ी वत्स हो तो धन का क्षय करे। तथा बाँयी और दाहिनी ओर वत्स हो तो सुखकारक एक दिशा में वत्स तीन मास तक रहता है, जिसे प्रवेशादिक उपरोक्त कार्य तीन मास तक जो रोक नहीं सके, उसके लिये भी वास्तुसार में बतलाया है कि“गिहभूमि-सत्तभाए पण-दह-तिहि-तीस-तिहि-दहक्खकमा। इअ दिणसंखा चउदिसि सिरपुच्छसमंकि वच्छठिई ॥” प्र. १, गा. २०. घर की भूमि के प्रत्येक दिशाओं में सात-सात भाग करना, उनमें अनुक्रम से पाँच, दश, पन्द्रह, तीस, पन्द्रह, दश, और पाँच दिन तक वत्स रहता हैं। इस प्रकार चारों ही दिशा में समझना चाहिये। जिस अङ्क के भाग पर वत्स का मस्तक हो उसके सामने उसी अङ्क वाले भाग पर पूँछ रहती
SR No.002234
Book TitleDevta Murti Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Bhagvandas Jain, Rima Jain
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year1999
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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