________________
देवतामूर्ति-प्रकरणम् मूर्ति की पहले के जैसी ही फिर से प्रतिष्ठा करनी चाहिये।
____16. पर-35. विवेकविलास सर्ग १ में कहा है किनखांगुलीबाहूनासां-घीणां भंगेष्वनुक्रमात् । शत्रुभिर्देशभङ्गश्च बन्धः कुलधनक्षयः ।। प्रतिमा का नख खण्डित हो जाए तो शत्रु से भय, अङ्गुली खण्डित हो जाय तो देश का विनाश, बाहु खण्डित हो जाय तो बंधन, नासिका खण्डित हो जाय तो कुलक्षय और पैर खण्डित हो जाए तो कुल का क्षय और धन की हानि होवे।
17. पह-36. इसी प्रकार यह श्लोक अक्षरशः विवेकविलास अ १ श्लोक १४३ में लिखा है। वास्तुसार प्र. २ गाथा ४५ में लिखा है कि“पयपीठ चिण्ह-परिगर-भने जन-जाणभिच्चहाणिकमे। छत्तसिरिवच्छसवणे लच्छीसुहबंधवाण • खयं ॥" पाद, पीठ, चिह्न और परिकर इनमें से किसी का भङ्ग हो जाय तो अनुक्रम से स्वजन, वाहन और सेवक की हानि होवे। छत्र, श्रीवत्स और कान खण्डित हो जाय तो क्रम से लक्ष्मी, सुख और बान्धवों का क्षय हो जाय। . .
18. पछ-37. इसी प्रकार यह श्लोक अक्षरशः विवेकविलास अ. १ श्लोक १४५ में लिखा है। फेरुकृत वास्तुसार प्र २ गा. ४३ में लिखा है कि"पाहाणलेवकट्ठा दंतमया चित्तलिहिय जा पडिमा। अप्परिगर माणाहिय न सुन्दरा पूयमाणगिहे ॥" पाषाण, लेप काष्ठ, दाँत और चित्र की प्रतिमा यदि अपने परिवार से रहित हो और मान से अधिक (ग्यारह अङ्गुल से बड़ी) हो तो पूजन करने वाले के घर में अच्छी नहीं है।