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19. पद्य-38.
फेरुकृत वास्तुसार (२-४८) में कहा है किउत्ताणा अत्थहरा वकग्गीवा सदेसभंगकरा । अहोमुहा य सचितां विदेसगा हवइ नीचुच्चा ||
देवतामूर्ति-प्रकरणम्
प्रतिमा यदि ऊर्ध्वमुख वाली हो तो धन का नाश करे, टेढ़ी गरदन वाली हो तो स्वदेश का विनाश, अधोमुख वाली हो तो चिन्ता उत्पन्न करावे और ऊँचे नीचे मुख वाली हो तो विदेश गमन करावे ।
प्रतिमा दृष्टि दोष
“ऊर्ध्वदृग्द्रव्यनाशाय तिर्यग्दृग् भोगहानये ।
दुःखदा स्तब्धदृष्टिश्चाऽधोमुखी कुलनाशिनि ॥ - विवेकविलास
प्रतिमा की दृष्टि ऊँची हो तो द्रव्य का नाश करे । तिरछी दृष्टि हो तो भोगनीय वस्तु की हानि करे । स्तब्ध ( रुकी हुई) दृष्टि हो तो दुःख देने वाली और अधो दृष्टि हो तो कुल (वंश) का नाश करने वाली है I बृहत्संहिता अ. ५९ श्लोक में लिखा है कि
वामावनता पत्नीं दक्षिणविनता हिनस्त्यायुः । अन्धत्वमूर्ध्वदृष्ट्या करोति चिन्तामधोमुखी दृष्टिः ॥
बाँयीं और दृष्टि नमी हुई हो तो स्त्री का विनाश कारक और दाहिनी और दृष्टि नमी हुई हो तो आयुष्य का क्षय कारक है । ऊर्ध्वदृष्टि हो तो नेत्र विनाश कारक है और अधोदृष्टि हो तो चिन्ता कराने वाली है। ठ. फेरुकृत वास्तुसार प्र. २ गाथा ५१ में लिखा है कि“उड्ढमुही धणनासा अप्पूया तिरियदिट्ठि विन्नेया । अइघट्टदिट्ठि असुहा हवइ अहोदिट्ठि विग्घकरा ॥”
प्रतिमा यदि ऊर्ध्व मुख वाली हो तो धन का नाश करे, तिरछी दृष्टि वाली हो तो अपूजनीय होवे । अति गाढ़ दृष्टि वाली हो तो अशुभ होवे और अधोदृष्टि वाली हो तो विघ्न कारक होवे ।
अन्याय द्रव्य से बनवाई मूर्ति के दोष“विसमासण- वाहिकरा रोरकरण्णायदव्वनिप्फन्ना ।
• हीणाहियंगपडिमा सपक्खपरपक्खकट्ठकरा ॥” वास्तुसार २/४९