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देवतामूर्ति-प्रकरणम्
"स्फटिकं सूर्यकान्तं च चन्द्रकान्तमिति त्रिधा। स्फटिकस्यैव भेदा: स्युः काममोक्षार्थदा: क्रमात् ।। श्रियं कामं तथाऽऽरोग्य-मृद्धिं पुत्रं जयं सुखम् । लभते पद्मरागादि-बिम्बानां क्रमशोर्चनात् ॥ शि.उ.अ. १ ॥” स्फटिक, सूर्यकांत और चन्द्रकान्त ये तीन स्फटिक रत्न के भेद हैं। ये तीनों क्रम से इच्छित फल, मोक्ष और धन को देने वाले हैं। तथा पद्मराग आदि रत्न बिम्बों की पूजा करने से क्रम से इस प्रकार फलदायक हैं—पद्मराग लक्ष्मीदायक, वज्र इच्छित फल दायक, नील रत्न आरोग्य प्रद, हिरण्यरत्न ऋद्धि देने वाला, वैडूर्यरन पुत्रदायक, प्रवाल बिम्ब विजय करने
वाला और पुखराज का बिंब सुखदायक है। . धातु और रत्न मूर्ति का मान-. .
“सर्वेषामपि धातूनां रलस्फटिकयोरपि। प्रवालस्य च बिम्बेषु चैत्यमानं यदृच्छया ।" विवेकविलास अ. २ श्लोक १५४ सब प्रकार की धातु, सब जाति के रन, स्फटिक और प्रवाल की मूर्ति बनवाना हो तो प्रासाद या द्वारा के मान से बनाने की जरूरत नहीं है।
ये तो अपनी इच्छानुसार मान की बना सकते हैं। प्रतिमा के योग्य काष्ठ
“कार्यं दारुमयं चैत्ये श्रीपा चन्दनेन वा। बिल्वेन वा कदम्बेन रक्तचन्दनदारुणा ॥ पियालोदुम्बराभ्याँ वा क्वचिच्छिशिमयापि वा। अन्यदारूणि सर्वाणि बिम्बकायें विवर्जयेत् ॥ .. तन्मध्ये च शलाकायां बिम्बयोग्यं च यद् भवेत् । तदेव दारु पूर्वोक्तं निवेश्यं पूतभूमिजम् ॥” आचारदिनकरे। देवालय में यदि काष्ठ की प्रतिमा बनवाना हो, तो श्रीपर्णा, चन्दन, बेल, कदम्ब, लाल चन्दन, पियाल, गूलर और शीशम इन वृक्षों की लकड़ी उत्तम है। इनसे दूसरे वृक्षों की लकड़ी वर्जनीय है। इन वृक्षों में जो