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आठ प्रकार के लोहबिंब
13. पद्य-26.
सौवर्णं राजतं ताम्रं पैत्तलं कांस्यमायसम् ।
सैसकं त्रापुषं चेति लौहं बिम्बं तथाष्टधा ॥ शिल्परत्न उ. अ. १ ॥ सुवर्ण, चाँदी, ताँबा, पित्तल, काँसी, लोहा, सीसा और कलई (रांगा) ये आठ प्रकार के लोह बिंब हैं ।
“मुख्यलोहानि चत्वारि हेमादीनि शुभानि हि ।
पिशाचलोहान्यन्यानि कांस्यादीनीति केचन ॥ "
देवतामूर्ति-प्रकरणम्
उपरोक्त आठ लोहों में प्रथम सुवर्ण आदि चार ( सोना चाँदी ताँबा और पित्तल) धातु शुभ हैं। तथा काँसी आदि चार (काँसी लोहा सीसा और कलई) धातु पिशाच रूप हैं 1
आचारदिनकर में कहा है कि “स्वर्णरूप्यताम्रमयं वाच्यं धातुमयं परम् । कांस्यसीस-बंगमयं कदाचिन्नैव कारयेत् ॥ .
तत्र धातुमये रीति-मयमाद्रियते क्वचित् । निषिद्धौ मिश्रधातुः स्याद् रीतिः कैश्चिच्च गृह्यते ॥”
आठ प्रकार के रत्न बिंब
सोना, चाँदी और ताँबा, इन धातुओं की प्रतिमा बनवाना श्रेष्ठ है, परन्तु कांसी, सीसा और कलई, इन धातुओं की कभी भी प्रतिमा नहीं बनवाना चाहिये। पीतल की प्रतिमा बनाना क्वचित् कहा गया है। मिश्रधातु (कांसी आदि) की प्रतिमा बनवाने का निषेध किया है। कितनेक आचार्य पीतल की प्रतिमा बनवाने को कहते हैं ।
" स्फटिकं पद्मरागं च वज्रं नीलं हिरण्मयम् ।
वैडूर्यं विद्रुमं पुष्पं रत्नबिम्बं तथाष्टधा ॥ शि. उ. अ.१ ॥” .
स्फटिक, पद्मराग (माणक), वज्र (हीरा), नील, हिरण्मय, वैडूर्य, प्रवाल, और पुखराज ये आठ रत्न जाति के बिंब हैं ।