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देवतामूर्ति-प्रकरणम्
मुद्गकापोतपद्माभा माञ्जिष्ठा च हरिप्रभा ।। कठिना- शीतला स्निग्धा सुस्वादा सुस्वरा दृढा । सुगन्धात्यन्ततेजस्का मनोज्ञा चोत्तमा शिला ॥" सफेद, लाल, कृष्ण और पीले रङ्ग के वर्ण वाली. कबूतर के वर्ण वाली. मूंग, कमेड़ी और कमल के वर्ण वाली, मजीठ के वर्ण की, हरे रङ्ग की, कठिन, ठंडी, चिकनी, अच्छे स्वाद वाली, अच्छे आवाज वाली, मजबूत, सुगन्धवाली, अच्छे तेज वाली और मनोहर ऐसी शिला उत्तम है। वर्णानुक्रम से शिला का वर्ण"श्वेता रक्ता पीता कृष्णा विप्रादीनां हिता सदा।" ब्राह्मण वर्ण के लिये सफेद, क्षत्रिय वर्ण के लिये लाल, वैश्य वर्ण के लिये पीली और शूद्र वर्ण के लिये काली शिला हितकारक है।
7. पy-11. मयमतम् अ. ३३ में लिखा है कि"उत्तरायणमासे तु शुक्लपक्षे शुभोदये। प्रशस्तपक्षनक्षत्रे मुहूर्ते करणान्विते ॥" उत्तरायण के सूर्य मासों में, शुक्ल पक्ष में, शुभ लग्न में, अच्छे नक्षत्र में और अच्छे करण युक्त मुहूर्त में शिला को ग्रहण करना चाहिये। .
. 8. पद्य-14-15. प्रासाद के. मान से बैठी प्रतिमा का मानप्रासाद के हाथ, बैठी मूर्ति के अङ्गुल प्रासाद के हाथ, मूर्ति के अङ्गुल
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इस प्रकार १३ हाथ से प्रत्येक हाथ एक-एक अङ्गुल बढ़ाने से पचास हाथ के विस्तार वाले प्रासादमें ८२ अङ्गुल की बैठी मूर्ति का मान होता है।