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________________ 37 देवतामूर्ति-प्रकरणम् अपने प्रतिमा के वर्ण के सदश हो तो दोष वाली नहीं है। मानसार अ. ४२ में लिखा है कि"सर्वेषां वर्णपाषाणे कृष्णरेखां विसर्जयेत् । श्वेतं च स्वर्णरेखां च सर्वसम्पत्करं शुभम् ॥” सब वर्ण के पाषाण में काले रङ्ग की रेखा या काले रङ्ग का दाग हो तो उस पाषाण का त्याग करना चाहिये। परन्तु सफेद या सुवर्ण रङ्ग की रेखा या दाग हो तो सब प्रकार की सम्पदा देने वाली शुभ है। पाषाण और काष्ठ में रेखा या दाग जानने की परीक्षा विवेकविलास में 'लिखी है“निर्मले नारनालेन पिष्ट्या श्रीफलत्वचा। विलिप्तेऽश्मनि काष्ठे वा प्रकटं मण्डलं भवेत् ॥” । निर्मल कांजी के साथ बेल फल की छाल पीस कर पाषाण या लकड़ी पर लेप करने से मण्डल (दाग) प्रकट हो जाता है। “मधुभस्मगुडव्योम-कपोतसदृशप्रभैः ॥ माञ्जिष्ठैररुणैः पीतैः कपिलैः श्यामलैरपि ॥ चित्रैश्च मण्डलैरेभि-रन्तज्ञेया यथाक्रमम्। खद्योतो वालुका रक्त-मेकोऽम्बुगृहगोधिका ॥ दर्दुरः कृकलासश्च गोधाखुसर्पवृश्चिकाः ॥ सन्तानविभवप्राण-राज्योच्छेदश्च तत्फलम् ॥" जिसं पाषाण या काष्ठ की प्रतिमा बनाना हो, उसी के ऊपर पूर्वोक्त लेप करने से या स्वाभाविक यदि मधु के जैसा मण्डल दीख पड़े. तो भीतर खद्योत जानना। भस्म के जैसा मण्डल दीख पड़े तो रेत, गुड़ के जैसा • हो तो लाल मेंढक, आकाश के जैसा हो तो पानी, कपोत (कबूतर) के वर्ण का दीख पड़े तो छिपकली, मंजीठ के जैसा हो तो मेंढक, रक्त के जैसा दीख पड़े तो शरट (गिरगिट), पीले वर्ण का दीख पड़े तो गोह, कपिल वर्ण का हो तो ऊँदर, काले वर्ण का दीख पड़े तो सर्प और चित्रवर्ण का मण्डल दीख पड़े तो भीतर बिच्छू है, ऐसा समझना। इस प्रकार के दाग वाले पाषाण का काष्ठ हो, उसकी प्रतिमा बनायी जाय तो सन्तान, लक्ष्मी, प्राण और राज्य का विनाश करती है।
SR No.002234
Book TitleDevta Murti Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Bhagvandas Jain, Rima Jain
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year1999
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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