________________
32
देवतामूर्ति-प्रकरणम्
करताल के जैसी शब्द वाली 'वल्ली' शिला, महिष के शब्द जैसी शब्दवाली 'वृक्ष' शिला और पूर्वोक्त दोनो शब्द से आधा शब्दवाली हो वह 'बावना' - शिला है 1
काश्यप-शिल्प अनुच्छेद ४९ श्लोक ५७ में प्रकारान्तर से कहा है. “चतुरस्रा च वस्वस्स्रा स्त्रीशिलेति प्रकीर्त्तिता ।
आयतास्रा च वृत्ता च दश-द्वादश- कोणका ॥
पुंशिला सा शिला ख्याता सृवृत्ता सा नपुंसका ॥"
जो शिला समचोरस या आठ कोणवाली हो वह स्त्रीशिला, लंब चोरस अथवा गोल हो तथा दस या बारह कोणवाली हो वह पुल्लिङ्ग शिला . और अच्छी तरह गोल हो वह नपुंसक शिला हैं ।
2. पद्य - 5.
ये दोनों श्लोक मयमतम् अनु. ३३ श्लोक १०-११ के अनुसार हैं ।
इस अध्ययन में लिखा है कि लिङ्ग तीन प्रकार के हैं“निष्कलं सकलं मिश्रं लिङ्ग चेति त्रिधा मतम् । निष्कलं लिङ्गमित्युक्तं सकलं बेरमुच्यते ॥ १ ॥ मुखलिङ्ग तयोर्मिश्रं लिंगार्चाकृतिसन्निभैः ॥”
निष्कल – लिङ्ग, सकल- - मूर्ति, और मिश्र - लिङ्ग के आकार का मुख लिङ्ग ।
ये दोनों पुल्लिङ्ग शिला से बनाना चाहिये ।
प्रासाद - गर्भ गृह में खनन मुहूर्त के समय जो कूर्म के चिह्न वाली शिला की स्थापना की जाती है, उसको कूर्मशिला कहते हैं । इस कूर्म शिला
के ऊपर जो शिला रखी जाए वह ब्रह्मशिला है। मत्स्यपुराण अ. २६६ श्लोक ४ में कहा है कि
“ अधः कूर्मशिला प्रोक्ता सदा ब्रह्मशिलाधिका ।
उपर्यवस्थिता तस्या ब्रह्मभागाधिका शिला ॥”
कार्यभेद विपरीत करे तो उसका फल शिल्परत्न के उत्तर भाग अध्ययन पहले में कहा है कि
स्त्रीशिलाकल्पिते लिङ्गे राष्ट्र राजा च नश्यति । पुंशिलाकल्पिते पीठे लिङ्गे पीठे च षण्ढके ॥ २८ ॥