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देवतामूर्ति-प्रकरणम्
offering by householders, and the juhoti form of worship should be performed, and appropriate mantras (or incantations) recited in the course of the ceremony. (60).
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इति विबुधविकारे शान्तयः सप्तरात्रं, द्विजविबुधगणार्चा गीतनृत्योत्सवाश्च । विधिवदवनिपालैर्यैः प्रयुक्ता न तेषां,
भवति दुरितपाको दक्षिणाभिश्च रुद्धः ॥ ६१ ॥
इस प्रकार देवकृत उत्पात होने से सात दिन तक गीत नृत्य आदि महोत्सव पूर्वक ब्राह्मण और देवगणों की पूजा जो राजा विधिपूर्वक करता है और ब्राह्मणों को दक्षिणा देता है, वह उत्पात के अनिष्ट फल को रोक देता है ।
Divine portents are pacified in this manner, if for seven days (from the sighting of the omen) the king arranges for the performance of appropriate ceremonies, ritual and prayers, as well as songs and dances and so forth to please the gods, and gives charity donations to the Brahmins. Thus may the calamitious consequences of the portent be averted and neutralised. (61).
यत्स चक्रफल
वत्सेनाभिमुखे कुर्याद् यात्रा द्वारं च वास्तुनः ।
प्रवेशः प्रतिमादीनां गुर्विणीनां विशेषतः ॥ ६२ ॥
जिस दिशा में वत्स हो उस दिशा में यात्रा (गमन करना), नवीन वास्तु द्वार, और प्रतिमा का मंदिर में प्रवेश इत्यादि कार्य नहीं करना चाहिये। उसमें भी गर्भवती स्त्री विशेष करके प्रवेश नहीं करे । २४
Journeys should not be undertaken in the direction where Vatsa is positioned, nor should gateways facing it be constructed. Idols should not be brought into the temple from that direction, and pregnant women in particular must not enter from that direction. (62).