________________
देवतामूर्ति-प्रकरणम्
उत्पात का फल विपाक
मासैश्चाप्यष्टाभि: सर्वेषामेव फलपाकः ॥५८ ॥
ऊपर कहे हुए उत्पातों का फल आठ मास के भीतर हो जाता है। इसके बाद निष्फल हो जाते हैं।२३
The resultant consequences of all these above mentioned 'unnatural phenomena come into play within 8 months. After the cxpiry of this time they do not 'bear fruit. (58).
उत्पात शान्ति
बुध्वा देवविकारं शुचि: पुरोधास्त्रयहोषितः स्नातः।. स्नानकुसुमानुलेपनवस्त्रैरभ्यर्चयेत् प्रतिमाम् ॥५९॥ . मधुपर्केण पुरोधा भक्ष्यैर्बलिभिश्च विधिवदुपतिष्ठेत् । स्थालीपाकं जुहुयाद् विधिवन्मन्त्रैश्च तल्लिङ्गैः ॥६० ॥
देव प्रतिमा में विकार हुआ जानकर, तीन उपवास किया हुआ पुरोहित स्नान करके पवित्र होवे, बाद में पवित्र जल से पञ्चामृत जल से प्रतिमा को स्नान करावे, चंदन बरास आदि से विलेपन करे, तथा 'पुष्प, और वस्त्र आदि एवं दही
और मधु आदि से षोडशोपचार पूजा करे। पीछे खाने योग्य नैवेद्य आदि लेकर आवे और विधिपूर्वक उन देवों के मंत्रानुसार पक्वान्नों का होम करे।
Transformations or changes in the statue of a deity may be appeased if a ritually purified priest, who has previously fasted for 3 days prior to the appeasement ceremony, bathes, and then worships the deity, bathing the idol and adorning and annointing it with unguents made from sandalwood, camphor etc., and offering flowers and clothes and so forth. (59).
The family-priest (purodha), having performed what is stated above, must then offer the madhuparka mixture of honey, curd and other ingredients to the idol. Then, placing suitable food and oblation (or sacrificial) offerings in the ritually prescribed manner before the idol, the priest should worship the deity in the correct ceremonial manner. The ceremonies of sthalipakam-a ritual