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देवतामूर्ति-प्रकरणम्
अशुभ. प्रतिमा का लक्षण और फल
नाधिकाङ्गा न हीनाङ्गाः कर्त्तव्या देवता: क्वचित् । स्वामिनं घातयेन् न्यूना करालवदना तथा ॥३० ॥
देवों की प्रतिमा मान से अधिक या हीन अङ्ग वाली कभी भी नहीं बनाना चाहिये। हीन अङ्ग वाली और भयंकर मुख वाली प्रतिमा बनवाने वाले के लिये नाशकारक है।
Statues of deities must never be disproportionate in scale. If an idol has smaller limbs and a large and awesome head it. will bring destruction to the donor of the statue. (30). .
अधिका शिल्पिनं हन्ति कृशा चैवार्थनाशिनी। कृशोदरी तु दुर्भिक्षं निर्मांसा धननाशिनी ॥३१॥
प्रतिमा यदि मान से अधिक अङ्ग वाली हो तो बनाने वाले शिल्पी के लिये नाश कारक है, कृश (दुर्बल) हो तो धन का नाश करती है। दुर्बल पेट वाली हो तो दुर्भिक्षकारक और मांस रहित अङ्ग वाली हो, तो धनः का नाश करती
A disproportionate statue with large limbs will lead to the destruction of the sculptor, while one with exceptionally lean and emaciated proportions will destroy wealth. Making an idol with an emaciated stomach will cause famine, and making one without any flesh will cause poverty. (31).
वक्रनासातिदुःखाय संक्षिप्ताङ्गा भयंकरी। . चिपिटा दुःखशोकाय आधिपत्यविनाशिनी ॥३२॥
टेढ़ी नासिका वाली अधिक दुःखदायक, न्यून अङ्ग वाली भयदायक, चपटे अङ्ग वाली प्रतिमा दुःख और शोककारक एवं ऐश्वर्य का विनाश करने वाली है।
Statues with crooked noses will produce sorrow, while those with small limbs will cause fear, and those with flattened features will produce both sorrow and lamentation, as well as lead to the destruction of sovereignity and power. (32).