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देवतामूर्ति-प्रकरणम्
संस्कार योग्य प्रतिमा
धातुरनविलेपोत्थ व्यङ्गाः संस्कारयोग्यकाः। काष्ठपाषाणजा: भग्ना: संस्कारार्हा न देवता: ॥२८॥
धातु, रत्न और लेपमय मूर्ति यदि जीर्ण हो जाय अथवा खण्डित हो जाय तो वह फिर संस्कार करने योग्य है। काष्ठ और पाषण की मूर्ति जीर्ण हो जाय तो वह फिर संस्कार करने योग्य नहीं है।१५ . If a statue made of metal, jewel, or stucco gets damaged or desecrated, it maybe re-consecrated and purificd. However, broken statues made from wood or stone cannot be sanctified anew. (28). देवालाय से बाहर स्थापन करने योग्य देव
भैरव: शस्यते लोके प्रत्यायतनसंस्थितः ॥ न मूलायतने कार्यो भैरवस्तु भयंकरः ॥
नारसिंहो वराहो वा तथाऽन्येऽपि भयंकरा: ॥२९ ॥ . देवालय से बाहरं स्थापित किया हुआ भैरव लोक में श्रेष्ठ है। भैरव देव बड़ा भयंकर होने से कोई भी देव के मुख्य प्रासाद में उसकी स्थापना नहीं करना चाहिये। परन्तु भैरव का ही मुख्य प्रासाद हो तो उसमें स्थापन कर सकते हैं। इसी प्रकार नारसिंह और वराह आदि भयंकर देवों के विषय में भी समझना।
It is most ideal for the world if an image of Bhairav is installed outside a temple-building. Lord Bhairav is an extremely fearsome and frightening deity and his statues should not be installed inside the main temples of other deities. Such idols may, however, be installed within a templo dedicated to Bhairav himself. (In other words, where Bhairav is the main deity).
Statues of Narsingh, Varah and other terrible-to-behold and awe-inspiring deities should be regarded in the same way too. 129),
... ऐसा मत्स्य पुराण अ. २५९ श्लोक १४-१५ में यही श्लोक है। ** Stanzas 14-15 ch. 259 of Matsya Purana are similiar to this.