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देवतामूर्ति प्रकरणम् The neutral or genderless category of stone should be used for 'Brahma' and 'Kurma' stones , and for the base and lower portions of temples/ palaces, as well as for tanks, water reservoirs, . ponds etc. (6). भूमि में रही हुई शिला का माथा आदि अङ्ग विभाग का निर्माण :
प्राक् पश्चाद्दक्षिणे सौम्ये स्थिता भूमौ तु या शिला। प्रतिमाया: शिरस्तस्याः कुर्यात् पश्चिमदक्षिणे ॥७॥
भूमि में जो शिला पूर्व पश्चिम अथवा उत्तर दक्षिण लंबी रही हुई हो, वह पहले ध्यान में रख लेना चाहिये। जो शिला पूर्व पश्चिम दिशा में लम्बी . हो, उस शिला के पश्चिम तरफ का और जो उत्तर दक्षिण दिशा में लम्बी हो, उस शिला के दक्षिण तरफ के भाग का मूर्ति का शिर. बनाना चाहिये ॥७॥३.
(The construction of the forehead and other features on , stone which has been lying underground) :-'.
... Stone which was lying length-wise in an east-to-west or a north-to-south direction within the ground should be considered first of all. Slabs which lie east-to-west in length should have the statue's head on the western side; while those lying north-to-south should have the head on the southern side. (7). '
आकृति से शिला का ग्रहण
निविडा निव्रणा मृद्वी सुगन्धा मधुरा शिला। सर्वार्चालिङ्गपीठेषु श्रेष्ठा कान्तियुता च या ॥८॥
जो शिला बारीक पोगरवाली, सघन, छेद रहित, कोमल, सुगन्धवाली, मधुर और कान्तिवाली हो, ऐसी शिला सब जाति की प्रतिमा, शिवलिङ्ग और पीठिका के लिये श्रेष्ठ है ॥८॥
“Kurma shila' is a stone bearing a tortoise mark which is placed in temple/palace foundations and sanctum sanctorum at the start of construction work. 'Brahma shila' is the slab placed on top of the 'Kurma' or tortoise shila. (see Matsya Purana stanza 4 : 266).