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देवतामूर्ति-प्रकरणम्
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स्त्रीशिला कृशमूलाग्र - स्थूला षण्ढेति निःस्वना ॥४ ॥
जो 'शिला मूलभाग में स्थूल हो और अग्र शिरा भाग में कृश हो तथा कांसो के बने हुए करताल - झांझ वाद्य विशेष के जैसी आवाज (शब्द) करने वाली हो, वह स्त्री जाति की शिला मानी जाती है। जो शिला मूल भाग में कृश हो और अप्रभाग में स्थूल हो एवं शब्द रहित हो, वह नपुंसक जाति की शिला मानी जाती है ॥ ४ ॥
A stone (shila) which has a bulky and thick base but a slim, lean and thin tip, and a sound like bronze cymbals, is classified as 'feminine '.
Conversely, a slab of stone (shila) which is thin and lean at its base and becomes thick towards the top, and which gives out no sound at all, belongs to the neutral or genderless category. ( 4 ).
शिला के भेद से कार्य भेद
लिङ्गानि प्रतिमा मिश्रं कुर्यात् पुंशिलया बुधः ।
युञ्ज्यात् स्त्रीशिलया सम्यक् पीठिका - शक्तिमूर्त्तयः ॥ ५ ॥ षण्ढोपलेन कर्त्तव्ये ब्रह्मकूर्मशिले तथा । प्रासादतलकुण्डादि-कर्म कुर्याद् विचक्षणः ॥ ६ ॥
बुद्धिमान् शिल्पकार शिवलिङ्ग और देवों की मूर्तियाँ पुरुष जाति की शिला से बनावे। पीठिका (जलहरी) और देवी की मूर्तियाँ स्त्री जाति की शिला से - बनावे ॥५ ॥ तथा ब्रह्म-शिला, कूर्मशिला एवं प्रासाद के तल भाग और कुण्ड आदि नपुंसक शिला से बनावे ॥ ६ ॥
( Using stones correctly) -
An intelligent artisan should use the masculine category of shilas for making Siva-lingas and idols of gods etc., while the peethika bases of Siva-lingas and statues of the goddesses and the like should be fashioned out of stone slabs belonging to the female category. (5) .