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देवतामूर्ति-प्रकरणम् शिला-परीक्षाधातुरत्न-शिलाकाष्ठ—चित्रलेपसमुद्भवम्। यद्रूपं विधिवत्तस्य विधिं वक्ष्यामि वस्तुनः ॥२॥
धातु रत्न पाषाण लकड़ी चित्र और लेपमय (ईंट, चूना मिट्टी आदि) वस्तुओं के जो रूप बनते हैं, उन रूपों के बनाने की विधि को मैं (मण्डन सूत्रधार) कहता . हूँ ॥2॥ (Examining the Stone) –
Let me (Mandan) tell you about the many forms that can be created from materials like metals, precious stones, stone, wood; paint and frescoes, - as well as the method of making such forms.
(2).
एकवर्णा घना स्निग्धा—मूलाग्रादार्जवान्विता। "अज (? गज) घंटारवाघोषा सा पुंशिला प्रकीर्तिता ॥३॥
जो शिला एक ही वर्ण वाली, सघन, चिकनी, मूल से लेकर अग्र भाग तक बराबर एक समान और बकरी के गले में बंधी हुई घंटी के जैसी अथवा हाथी की पीठ पर लटकते हुए घंटे के जैसी आवाज वाली हो वह पुरुष जाति की शिला है ॥३॥
A slab of stone-or shila, that is of one colour and type, smooth and compact (or dense), and is of the same thickness from its base to its apex, and whïch has, furthermore, a resonance like bells around the neck of a goat, or the bell hanging on an elephant's back** is classified as a ‘masculine' stone. (3).
स्थूलमूला कृशाग्रा या कांस्यतालसमध्वनिः ।
मयमतम् आदि दूसरे शिल्प ग्रन्थों में गजघंटा ऐसा पाठ है। यह तीसरा और चौथा श्लोक 'मयमतम्' ग्रंथ से मिलता है। (अनुच्छेद ३३ श्लोक ८-९) "The Hindi translator reads this term as 'gajaghanta', which is the form occuring in other manuals, including the Maymatam, rather than the 'ajaghanta' which occurs in the original of this manuscript. .Stanzas 3 & 4 of Mandan's text are similar to stanzas 8 & 9:33, of Maymatam.