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प्रथमोध्यायः
मङ्गलाचरणम् आदौ य: सूत्रधारस्त्रिभुवनरचना सूत्रलक्ष्यस्य (स्वारूपो, येनेदं देवदैत्योरगधरणितलं पर्वताकाशरूपम् ।
सृष्टं चित्र विचित्रं जगदिति सकलं जन्तुवृक्षादिसर्वं, • वन्द्योऽसौ सृष्टिकर्ता सुरदनुजनरैः सर्पविद्याधराद्यैः ॥१॥ .: जो सूत्रधार आदि में त्रिभुवन की रचना करने के लिये सूत्र का लक्ष्य स्वरूप है, जिसने देव, दैत्य, साँप, भूमितल, पर्वत, आकाश, रूप, प्राणी और वृक्ष आदि. समस्त चित्र विचित्र वाला सारा जगत् बनाया, यह जगत्कर्ता देव दानव मनुष्य सर्प और विद्याधर आदि से वन्दनीय है। ... .. Invocation (Mangalacharan)
All praise to the Almighty who has created the Three Worlds (of heaven, the earth, and the netherworld), stringing together everything to give it meaning. The Sutradhar who has made this colourful and remarkable Universe of gods, demons, snakes, carth, mountains, sky, forms, living creatures, trees and all other things. To that Creator, all the gods, demons, humans, snakes, demi-gods (the Vidhyadhars) and others offer obeisance. (1).