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देवतामूर्ति-प्रकरणम्
वासुदेवः स विज्ञेयः शुक्लाभश्चातितेजसा ॥ २६ ॥
शिला के द्वार भाग में दो चक्र परस्पर मिले हुए हों, तो उसे अति तेज वाला सफेद वर्ण का वासुदेव जानना ।
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If the dvaradesha part of a stone has two circles joining each other, that stone should be regarded as Vasudeva, white in colour and possessing immense lustre and brilliance. (26).
संकर्षण
द्वे चक्रे एकलग्ने तु पूर्वभागे तु पुष्कलम् । संकर्षणाख्यो विज्ञेयो रक्ताभश्चातितेजसा ॥२७ ॥
जिसके साथ दो चक्र परस्पर मिले हुए हों और पूर्व भाग में छिद्र हो तो उसे अधिक तेजस्वी लाल वर्ण का संकर्षण जानना ।
A stone in which, two circles join each other, and which is pushkalam (abundant/complete/resonant), in its purva-bhag (upper portion) should be known as a Samkarshna of the red colour, possessing immense light and radiance. (27).
प्रद्युम्न
प्रद्युम्नः सूक्ष्मचक्रस्तु पीतदीप्तिस्तथैव च ।
सुषिरं छिद्रबहुलं दीर्घाकारं तु यद्भवेत् ॥ २८ ॥
जो शिला शङ्ख के चिह्न वाली, बहुत छिद्र वाली और लम्बी हो, उसमें सूक्ष्म चक्र हों, तो उसे प्रकाशमान पीले वर्ण का प्रद्युम्न जानना ।
A stone with minute circles, full of many holes and perforations, (?with the mark of a conchshell according to the Hindi translator), and long in measurement is Pradyumna, yellow. in colour and ablaze with light. (28).
अनिरुद्ध
अनिरुद्धस्तु नीलाभो वर्तुलश्चातिशोभनः ।
रेखाणां त्रितयं द्वारे पृष्ठं पद्मेन लाञ्छितम् ॥ २९ ॥