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देवतामूर्ति-प्रकरणम्
perpctual sorrow and unhappiness if it is worshipped even by careless oversight-i.e. unintentionally. (20).
त्याज्य शिला का परिहार
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खण्डिता स्फुटिता भिन्ना पार्श्वभिन्ना विभेदिका । शालिग्राम - समुद्भूता शिला दोषवहा न हि ॥२१॥
खंडित हुई, फटी हुई, चीरा वाली, एक तरफ चीरा वाली, अथवा अधिक चीरा वाली, इस प्रकार की शिला यदि शालिग्राम के आकार की हो, तो वह दोषकारक नहीं है ।
Desecrated or destroyed, broken, fragmented or split, or split at one side, or severely pierced stone should not be regarded as flawed and inauspicious if it is in the shape of the sacred Shaligrama stone, which is a symbol of Vishnu. ( 21 ) .
शिला के वर्ण भेद के फल
स्निग्धा सिद्धिकरी मुद्रा कृष्णा कीर्त्तिप्रदायिका । पाण्डुरा पापदहनी पीता पुत्रप्रदायिनी ।
नीला दिशति लक्ष्मीं च रक्ता भोगप्रदायिनी ॥ २२ ॥
मुलायम चीकनी शिला सिद्धि करने वाली, कृष्णा शिला कीर्त्ति देने वाली, सफेद वर्ण की शिला पाप को भस्म करने वाली, पीले वर्ण की पुत्र देने वाली, नीले रङ्ग की लक्ष्मी देने वाली और लाल रङ्ग की सुख देने वाली है ।
Stone that is smooth and glossy bestows success and achievement of siddhi (perfections). Black stone gives fame and glory, while pale whitish stone absolves sins, yellow stone grants the birth of sons, blue stone gives wealth and prosperity, and red stone provides happiness and enjoyment. (22).
शिला के वर्ण से संज्ञा भेद
कपिलं नारसिंहं तु वामनं पीतसन्निभं (चातसीनिभम्) । वासुदेवं सितं ज्ञेयं रक्तं संकर्षणं स्मृतम् ॥२३॥