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देवतामूर्ति-प्रकरणम्
smaller, it is the abode of Krishna and Shree (Lakshini ). ( 16 ). As the size of the stone decreases, its beneficial powers increase. Thus, such stones should always be worshipped to attain the goals of dharma, artha, kama and moksha (as set down by the sages). (17).
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त्याग करने योग्य शिला
कपिला कर्बुरा भग्ना रुक्षा छिद्राकुला च या रेखाकुलाऽस्थिरा स्थूला बहुचक्रैकचक्रिका ॥ १८ ॥ बृहन्मुखी बृंहच्चक्रा बद्धचक्रा च या पुनः॥ बद्धचक्राथवा या स्याद् भिन्नचक्रा त्वधोमुखी ॥ १९ ॥ दग्धा सुरक्ता चापूज्या निषण्णा (? भीषणा) पंक्तिचक्रिका । पूजयेद् यः प्रमादेन दुःखमेव लभेत् सदा ॥२०॥
जो शिला पीले वर्ण वाली, साधारण काले रङ्ग की, टूटी हुई, रूखी, छिद्रवाली, बहुत रेखा वाली, स्थिर न रह सके ऐसी, मोटा पोगर की, अधिक चक्रों वाली, एक चक्रवाली, बड़े मुख वाली, बड़े चक्र वाली, चक्र के भीतर चक्रों वाली, संलग्न चक्र वाली, भिन्न चक्र वाली, नीचे मुख वाली, जली हुई, अधिक लाल वर्ण की, भयङ्कर स्वरूप वाली और पंक्ति बंध चक्रों वाली हो, ऐसी शिला का प्रमाद से भी पूजन किया जाय तो हमेशा दुःख ही प्राप्त होता है ।
Stone which is tawny or reddish-yellow in colour, or spotted and variegated, broken, flaky, full of holes, and has many lines and ridges; is unable to remain motionless and is coarse-grained, with many circular marks, or with one circle; (18) ; or stone which has an expanded face (brhan-mukhi), large circles, circles within circles, circles joining each other, or scattered circles, and is downward facing ( 19 ) ; or stone which is burnt by fire, very red in colour, or a terrible form and having rows of circles, will cause
1. मु. निद्राकुला