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जैन-न्याय को आचार्य अकलंकदेव का अवदान
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___ तत्पश्चात शाहपुर दि० जैन समाज के पदाधिकारियों ने सरस्वती के उपासक विद्वानों का तिलक, प्रशस्ति पत्र एवं प्रतीक से हार्दिक सम्मान किया। डॉ० रमेशचन्द्र जैन, बिजनौर ने विद्वानों की ओर से शाहपुर दि० जैन समाज के इतने सुन्दर कार्यक्रम हेतु बधाई दी तथा आतिथ्य सत्कार हेतु समाज की भूरि-भूरि प्रशंसा की। पं० पवनकुमार शास्त्री मोरेना ने कविता प्रस्तुत की।
अध्यक्ष वक्तव्य में श्री पं० शिवचरण लाल मैनपुरी ने कहा कि यह गोष्ठी जैन न्याय का मानो दशाब्दी समारोह है क्योंकि १६८६ में सर्वप्रथम पू० उपाध्यायश्री जब क्षुल्लक अवस्था में ललितपुर में विराजमान थे उस समय उन्हीं की प्रेरणा से डॉ० अशोक कुमार जैन के संयोजकत्व में यह प्रयास प्रारम्भ हुआ था। जैन दर्शन के क्षेत्र में अकलंक का समाज एवं राष्ट्र पर महान् उपकार है।
___ संयोजक डॉ० अशोक कुमार जैन ने समागत सभी विद्वानों के प्रति एवं शाहपुर दि० जेन समाज के सदस्यों के प्रति आभार व्यक्त किया।
अन्त में पू० उपाध्यायश्री ने आशीर्वचन में कहा कि विद्वान् समाज के मार्गदर्शक हैं। साहित्य साधना के साथ-साथ चारित्रिक क्षेत्र में भी इन्हें विकास की ओर अग्रसर होकर समाज के बीच में आदर्श प्रस्तुत करना चाहिए।
संगोष्ठी में लिये गये महत्त्वपूर्ण निर्णय१. आ० जिनमती जी ने कुछ वर्षों पूर्व प्रमेयकमलमार्तण्ड का अनुवाद किया था। उसका पुनः मुद्रण हो। २. राष्ट्रीय विद्वत् संगोष्ठी में पठित आलेखों का सम्पादन कर प्रकाशित किया जाए।