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________________ 180 जैन-न्याय को आचार्य अकलंकदेव का अवदान इनमें उसका उल्लेख है। अष्टसहस्री श्लोकवार्तिक के बाद की तथा आप्तपरीक्षा आदि के पूर्व की रचना है। यह करीब ई० ८१०-८१५ में रची गई होगी तथा पत्रपरीक्षा, श्रीपुरपार्श्वनाथस्तोत्र और सत्यशासनपरीक्षा- ये तीन रचनाएं ई० ८३०-८४० में रची ज्ञात होती हैं। इससे भी आ० विद्यानन्द का समय पूर्वोक्त ई० ७७५-८४० प्रमाणित विद्यानन्द ने विद्यानन्दमहोदय के बाद तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक ई० ८१० में बनाया. है। उन्होंने अपनी प्रौढ़ अवस्था में ग्रन्थ रचना प्रारम्भ की होगी। यदि विद्यानन्द का जन्म ई० ७६० में मान लिया जाए तो ये अपनी ४० वर्ष की अवस्था में ग्रन्थ रचना प्रारम्भ कर सकते हैं। ऐसी दशा में इन्हें भी कुमारसेन की तरह अकलंक. के उत्तरसमकालीन होने का सौभाग्य प्राप्त हो सकता है। ___ विद्यानन्द ने अपने तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक, अष्टसहनी, प्रमाण परीक्षा, पत्र परीक्षा नय विवरण और सत्यशासन परीक्षा आदि सभी ग्रन्थों में अकलंक के लघीयस्त्रय की . कारिकाएं उद्धृत की हैं। सिद्धिविनिश्चय और न्यायविनिश्चय के श्लोक भी इसी तरह प्रमाण रूप में उद्धृत हैं। इन्होंने अकलंक वाङ्मय को खूब मांजा और उसके गूढ़ रत्नों को अपनी प्रज्ञाशाण पर रखकर चमकाया है। शीलांकाचार्य : आगमों के आघटीकाकार शीलांकाचार्य ने वि० ६२५ (ई० ८६८) में चउप्पन्न महापुरिस चरिउ समाप्त किया था। ये आगमों के प्रसिद्ध टीकाकार हैं। इन्होंने सूत्रकृतांगटीका में लघीयस्त्रय से दो श्लोक उद्धृत किये हैं। अभयदेव सूरि : वादमहार्णवकार तर्कपंचानन अभयेदवसूरि (ई० १०वीं सदी) ने सन्मतितर्कटीका में लघीयस्त्रय की कारिकाएं तथा उसकी स्ववृत्ति उद्धृत की है और उनकी प्रमाण व्यवस्था का समर्थन किया है। सोमदेवसूरि : सुप्रसिद्ध बहुश्रुत साहित्यकार आचार्य सोमदेवसूरि (ई० १०वीं सदी) ने यशस्तिलकचम्पू उत्तरार्ध में सिद्धिविनिश्चय का ‘आत्मलाभं विदुर्मोक्षम्' श्लोक उद्धृत किया है। अनन्तकीर्ति : आचार्य अनन्तकीर्ति (ई० १० सदी) ने अपनी लघुसर्वज्ञसिद्धि प्रकरण में सिद्धिविनिश्चय का दश हस्तान्तरं श्लोक उद्धृत किया है और उनके वाङ्मय की
SR No.002233
Book TitleJain Nyaya me Akalankdev ka Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamleshkumar Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year1999
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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