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आचार्य पूज्यपादकृत सर्वार्थसिद्धि और आचार्य .......
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पूज्यपाद ने की है- स एषोऽवधिः षड्विकल्पः । कुतः ? अनुगाम्यननुगामिवर्धमानहीयमानावस्थितानवस्थितभेदात्। इसका आ० अकलंक ने एक वाक्य में वार्तिक (सं०४)बनाकर सर्वार्थसिद्धि के आगे के कुछ विवेचन को इस वार्तिक का भाष्य बना लिया। इसके बाद आ० अकलंक ने इन सबका आगमिक परम्परा से बहुत अच्छा और विस्तृत विवेचन किया है। ठीक इसी तरह २३वें एवं २४वें सूत्र "ऋजुविपुलमती मनःपर्यय, एवं विशुद्धयप्रतिपाताभ्यातद्विशेषः" को भी प्रस्तुत किया गया है।
इसी तरह इस प्रथम अध्याय के अन्य सूत्रों के आधार पर वार्तिक और भाष्य लिखे, किन्तु यहाँ मात्र आधार लिया गया है, वार्तिक और भाष्य पूरे मौलिक हैं। आगे के अध्यायों का विवेचन भी प्रथम अध्याय की पद्धति के आधार पर किया गया है।
प्रस्तुत निबंध में आ० पूज्यपाद और सर्वार्थसिद्धि तथा आ० अकलंकदेव और उनके तत्त्वार्थवार्तिक का तुलनात्मक अध्ययन बहुत ही महत्त्वपूर्ण होते हुए भी अपने आप में अनेक शोधप्रबन्धों का विषय है, इसीलिए यहाँ इस तुलनात्मक अध्ययन को मात्र प्रथम अध्याय तक सीमित रखा है।