________________
आचार्य अकलंक की प्रमाण-मीमांसा व सत्यता की कसौटी
95
पाश्चात्य- दार्शनिक वस्तु और सत्यता की एक कसौटी मानते हैं और दूसरी कसौटी को उस कसौटी का विरोधी सिद्ध करते हैं क्योंकि उनके मत में सत्ता का स्वरूप अपरिवर्तनशील है। इसके विपरीत, जैनदार्शनिक वस्तु का विवेचन एक विशिष्ट रूप में करते हैं। वस्तु-विषयक सभी दृष्टियां उस विशिष्ट दृष्टिकोण के संबंध में सत्य हैं। सभी दृष्टियां सत्य को जानने के सम्भावित माध्यम हैं। इससे सिद्ध होता है कि इन दार्शनिकों द्वारा प्रमाण के जो विभिन्न लक्षण दिये गये हैं, वे सम्भव हैं, क्योंकि वस्तु में विभिन्न गुण सम्भव हैं।